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28 Nov 2019 · 1 min read

मेरे अपने

हम अपने ही शहर में अजनबी से हो गये ।
जाने पहचाने से रिश्ते अब पराये से हो गये ।
अब तो बेखुदी का ये आलम है कि अपने से भी परेजाँ हो गया हूँ ।
इस भीड़ भरे शहर मे अपनों को खोजने की हस़रत लिये परेशाँ हो गया हूँ।
हर तरफ नज़र आते है खुदग़र्ज़ चेहरे और फ़रेब़ी निगाहें।
ढूँढता फिर रहा हूँ शायद इनमें कोई हम़दर्द हो जो बता सके मुझे मेरी राहें।

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