गज़ल
वज़्न–2122 1212 22(112)
हक सुनाया असल दुहाई है
सब भुला कर नज़र चुराई है|
आस होकर मिली कही राहत
बोझ में ले बसर भुलाई है |
पढ़ सवक मायना भलाई हैं
बिन पढ़ें जिंदगी रुलाई है |
मुफलिसी से निभा लजाई है
जिंदगी सोच में बिताई है |
जान मुश्किल लगें लेकर चलते,
देख आशा की चश्म जगाई है।
रेखा