गज़ल
वज़्न– 212 212 212
उम्र कटी गम पहर देखते
काश मेरा सफ़र देखते.
बैठी कहीं मुस्कुरा सोचती
बात पाया सा ठहर देखते.
याद हिचकी सुबह से रही
बिन हिला सा शज़र देखते.
आसमां मे सितारा बन बढ़े
लोग तुमहे यूँ अगर देखते.
नज़र में सफलता ही दिखी
राह में मुश्किल डगर देखते.
देखते हैं जो मंज़िल “मैत्री”
कदमों का एक गुज़र देखते.
रेखा मोहन २८/८/१९