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19 Dec 2018 · 1 min read

पनघट-चोका

पनघट-विधा-चोका

आर्द्र है आँखे
पनिहारिन ताके
घूँघट-पट
भंगिमा नटखट
बिखरी लट
हाथ पिपासु घट
कहाँ है बाँके
वो आकर तो झाँके
विलुप्त घटा
परिवर्तित छटा
मन के पीर
सिमट रहा नीर
आतुर खग
छटपटाता जग
अकुलाहट
रुदित नद-तट
सूखता पनघट।
-©नवल किशोर सिंह

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