नदियों का उधार

कस्बे के कोलाहल
से दूर
सिवान था सुदूर
काम से लौटते
मजदूर
पर तुमसे मिलने का
सुरूर I
सुहानी
सुरमयी शाम
आज भी है
याद
तेजी से ढलती
शाम
चाँदनी आने को
करती फ़रियाद I
हमारे मिलन ने
उसे रोक रखा था
उसने तारों का
वास्ता दिया
उदास मैंने
तुमको विदा किया।
समय पंख
लगा कर अनवरत
इसी तरह
उड़ता रहा
वर्ष दर वर्ष ऐसे ही
बीतता रहा I
परणिति व
भविष्य से अन्जान
असीमित प्रेम
वार्ता
बन चुकी थी
अब जनवार्ता
अंततः वही हुआ
जो होना था।
एक दिन
तुम आये नहीं
अतिरेक प्रतीक्षा
के उपरांत
रात गहराती गयी।
निराश
घर लौट गया
इस तरह कई
दिन बीतता गया
पर तेरा पता
नहीं चला I
एक दिन
उदास तट पर
बैठा था
किसी ने बताया
एक धनपशु ने
अपन जाल फैलाया
तुम्हे फ़ांस कर
वह चलता बना
मुझे एक बार
पुनः अकेला कर गया।
तुम्हारे बिन
जिंदगी बीरान
लगती है
संभाले ना यह
अब संभलती है।
एक लम्बा अरसा
निकल गया
अब केवल मौत ही
दिखती दवा।
माना कि मेरी
हैसियत भी काम नहीं
हाँ पर उतनी भी
बेशक नहीं।
निर्मेष बेशक
समुंदर में
पानी अपार है
लेकिन क्या
य़ह सच नहीं ?
कि वह नदियों का
उधार है I
निर्मेष