5) कब आओगे मोहन
कब आओगे मोहन
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तेरे बिना सूना सूना
सुन मेरे प्यारे कृष्णा।
वृंदावन तुझे पुकारे
गोपी तेरी राह निहारे
सब बनी अब जोगन
कब आओगे मोहन।
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मन में सोच रही राधा
जीवन क्यों बची आधा।
सखियों को क्या बताऊँ
उर चैन कैसे मैं पाऊँ
नीरस लागे अब जीवन
कब आओगे मोहन ।
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झूले पर गए बागों में
मेहँदी रच गई हाथों में
बदरा उमड़-घुमड़ आये
गरज गरज हमें डराये
मस्ती में छेड़ जाए पवन
कब आओगे मोहन |
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बहारों ने ली जो अंगराई है
तेरे प्रेम की ही गहराई है
गेसुएँ निगोरी चूमें गालों को
समझाऊँ कैसे मतवालों को
प्राण तजूं अब मैं बिरहन
कहो कब आओगे मोहन |
–पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान
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