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9 Dec 2023 · 1 min read

आवारा परिंदा

बहती हवा का ठिकाना न पूछो,
हम्ही से हमारा फसाना न पूछो।
है आवारा परिंदे कल चले जायेंगे,
होता कहां है आना जाना न पूछो।

मुसाफिर कही कभी रुकता कहां है,
कल होगा कहां आशियाना न पूछो।
ठहरा है वक्त कब किस के लिए जो,
भूले बिसरों से गुजरा जमाना न पूछो।

मिलती कहां है अब सच्ची मोहब्बत
पता आशिकों का मयखाना न पूछो।
रंगीन बहुत है आज महफिल तुम्हारी,
मदहोशी का कितना पैमाना न पूछो।

अकेला चला हूं जिंदगी के सफर में,
है कौन अपना कौन बेगाना न पूछो।
अनजान हर शख्स से मैं तो यहां पर,
मेरा किस किस है दोस्ताना न पूछो।
@साहित्य गौरव

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