क्योंँ छोड़कर गए हो!
2212 122 ,2212 122
तुमसे गिला नही है, मुंँह मोड़कर गए हो।
खुद से ही पूछता हूंँ, क्योंँ छोड़कर गए हो।
बिखरे हुए थे कब के, मलबा है दिल में अब तक
पर आरजू हमारी ,ज़िंदा है दिल में अब तक
जिस खत में मेरा दिल था, क्योंँ मरोड़ कर गए हो।
तुमसे गिला नही है, मुंँह मोड़कर गए हो।
खुद से ही पूछता हूंँ, क्योंँ छोड़कर गए हो।
था हादसा भयानक , सदमे में दिल है अब तक
रूखसत किए जहांँ से,रास्ते में दिल है अब तक।
हूंँ आज भी वहीं पर ,जहांँ छोड़कर गए हो।
तुमसे गिला नही है, मुंँह मोड़कर गए हो।
खुद से ही पूछता हूं, क्योंँ छोड़कर गए हो।
इस गम की आबरू में, कुछ लफ़्ज़ नज़्म बनकर
निकले थे जुबांँ से जब ,उल्फत की बज़्म बनकर।
इक रात का था साया, तुम होड़कर गए हो।
तुमसे गिला नही है, मुंँह मोड़कर गए हो।
खुद से ही पूछता हूंँ, क्यों छोड़कर गए हो।
दीपक झा “रुद्रा”