●■ मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा ■●
किसी और पे उम्मीद न जगाऊँगा
न दुनिया से कोई आस लगाऊंगा।
मैं उस दिन कहूँगा अपनी मदद करने को
जिस दिन मैं भी किसी को सहारा लगाऊंगा।
दुनिया को तब कहूँगा बदलने को,
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
नही टोकूँगा किसी को बुरा करने से
नही किसी पे रोक लगाऊंगा।
मैं तब लोगों को समझाऊंगा दीन दया
जब मैं ख़ुद इसे पूर्ण समझ जाऊँगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को,
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
अच्छे बुरे कर्मों पर लोगों के मै
तबतक कोई चिंता न जताऊंगा।
जबतक पाप के गड्ढों से मैं
ख़ुद बाहर न निकल आऊँगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
नही झाकूँगा गिरेवान किसी की
नही किसी पर इल्ज़ाम लगाऊंगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा अच्छा बनने को
जब मैं ख़ुद अच्छा बन जाऊँगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
अभी ग़लत क्या सही है दुनिया
मैं ये तबतक न बतलाऊँगा।
होगा उस रोज़ मुझे ये हक़ पूरा,जब
मैं ख़ुद सही चलने लग जाऊँगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
जब ख़ुद भरे बैठा हूँ मैं मैलापन
दूसरों का दामन क्या साफ कराऊंगा।
उस दिन बेशक़ बोलूँगा सबको
जिस दिन में ख़ुद स्वच्छ हो जाऊँगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को,
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
कैसे कह दूं लोगों को फ़ितरत बदलने को
कैसे कह दूँ सच के पथ पे चलने को।
जबतक ईमानदारी, सच्चाई,भाईचारा
और प्रेम मैं ख़ुद ही न अपनाऊंगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को,
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
कैसे कह दूँ ग़ैरों को एक औरत
के ऊपर से गन्दी नजर हटाने को।
जबतक मैं ख़ुद अपने अंदर की
गन्दी नीयत को पूर्णताः न हटाऊंगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को,
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
दानव, दैत्य,और राछस,किसी को
तबतक कहना उचित नही।
जब तक मैं ख़ुद में एक अच्छे मानव की
मानवीय प्रवर्ति न लाऊँगा।
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
सच कहूँ तो औरों के कर्मों का मुझे ज्ञान नही
पर अपने अच्छे कर्मों,अच्छे भावों,और अच्छे विचारों
और व्यहवहारों के बल पर मैं,
इस धरती पर फिर से सतयुग लेकर आऊँगा
मैं दुनिया को तब कहूँगा बदलने को,
जब मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा।
कवि-वि.के.विराज़
कविता-मैं ख़ुद में बदलाव लाऊँगा
तिथि-02/06/2021