हिसाब-किताब / मुसाफ़िर बैठा
میں ہوں تخلیق اپنے ہی رب کی ۔۔۔۔۔۔۔۔۔
वसुधा में होगी जब हरियाली।
अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,
*अच्छा रहता कम ही खाना (बाल कविता)*
पहले खंडहरों की दास्तान "शिलालेख" बताते थे। आने वाले कल में
यूँ तो समन्दर में कभी गोते लगाया करते थे हम
Agar padhne wala kabil ho ,
देश के दुश्मन कहीं भी, साफ़ खुलते ही नहीं हैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
जो बातें अंदर दबी हुई रह जाती हैं
ताक पर रखकर अंतर की व्यथाएँ,
पत्रकारो द्वारा आज ट्रेन हादसे के फायदे बताये जायेंगें ।
मची हुई संसार में,न्यू ईयर की धूम
दिन गुजर जाता है ये रात ठहर जाती है
सुंदरता विचारों में सफर करती है,
*** " मन मेरा क्यों उदास है....? " ***