दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद।
तेरी - मेरी कहानी, ना होगी कभी पुरानी
23/169.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
मईया का ध्यान लगा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
चंद तारे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ये इंसानी फ़ितरत है जनाब !
मुझे भी लगा था कभी, मर्ज ऐ इश्क़,
*हे महादेव आप दया के सागर है मैं विनती करती हूं कि मुझे क्षम
‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ के 6 यथार्थवादी ‘लोकगीत’
मगर अब मैं शब्दों को निगलने लगा हूँ
हरियाली के बीच में , माँ का पकड़े हाथ ।
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
योग इक्कीस जून को,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali