ग़ज़ल:- खोटे सिक्के अब चलन में चल रहे हैं…
खोटे सिक्के अब चलन में चल रहे हैं।
झूठ के परिवेश में सब ढल रहे हैं।।
डस रहें हैं साँप बन कर वो मुझे ही।
आस्तीनों में जो मेरी पल रहे हैं।।
जान के दुश्मन थे कल तक जो हमारी।
अब गले में बांह डाले चल रहे हैं।।
हो गया हो जिनका सीना आज चौड़ा।
मिलिए उनसे वो कभी निर्बल रहे हैं।।
ले कमण्डल बांटते जो अब दुआयें।
ज़ाम वाली वो कभी बोतल रहे हैं।।
ज़ख्म देते फूल भी हाथों में उनके।
क़त्ल वाले हाँथ कब कोमल रहे हैं
घुल गये हैं दूध में पानी के जैसे।
एक दूजे के विरोधी दल रहे हैं।।
मिल गई सौहरत ज़रा सी ‘कल्प’ को क्या।
सबकी आँखों मे तभी से खल रहे हैं।।
✍️ ‘कल्प’~अरविंद