प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में सुकून !!
प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में
ईर्ष्या है, ज़लन है, मगर
नहीं मालूम सुकून कहां है?
आधुनिकता के इस युग में
फैशन है, इंग्लिश है, मगर
आधुनिक सोच कहां है?
तकनीक के इस युग में भी
आडम्बर बहुत है गहरा
आज भी आदमी चाहता है
हर औरत पर रखना पहरा
चाहे खुद किसी मर्यादा में न ठहराl
वीडियो गेम खेलना, एक्शन फिल्म देखना,
और क्रूरता व जल्दबाजी ने
प्रकृति से हमें अनाशक्त कर
भावनाओं को कुंठित किया इस कदर
कि हम मानसिक बीमारियों से ग्रसित
और शरीर से हो रहे क्षीण।
कभी थोडा़ बाहर आकर देखो
ज़रा भीड़ की दौड़ से, तो पाओगे
कि सुकून के लिए पैसे की दौड़ में
सुकून तो कब का गया,
जो मानवता हम भूल गये।
कितना ठग चुके हैं हम खुद को
आधुनिकता, प्रतिस्पर्धा और
तकनीक से सुकून के नाम परl
अब वक्त है रुककर सोचने,
फिर समझने और दिशा तय करने का।
पूछो खुद से कि क्या मकसद था तुम्हारा?
क्या परिभाषा गढी थी तुमने
अपने इस जीवन की?
कितना और झुठलाओगे खुद से
रहम खाओ अब तो
और ज़रा इत्तलाओ सब्र से
कि क्या चाहते हो तुम खुद से?
ताकि तुम्हारी रूह को सुकून मिले
और जि़ंदगी को मंजि़ल।
©️ रचना ‘मोहिनी’