हे माँ सीते !दीवाली पर आ जाना
हे माँ सीते ! विनती है मेरी
घर दीवाली पर आ जाना
राम लखन बजरंगी सहित
जन – जन के उर बस जाना
हे माँ सीते ! मेरा हर धाम
चरणों में तेरे रोज बसता है
दीवाली की यह जगमगाहट
तेरे ही तेज से मिलती है
माँ सीते ! आकर उर मेरे
प्यार फुलझड़ी जला जाना
हर जन को रोशन करके
अँधेरा दिल का मिटा जाना
हे मा सीते! आशीष अपना
दुष्ट जनों पर बरसा जाना
बन कर दीप चाहतों का तुम
नवयौवन का अंकुर फूटा जाना
हे माँ सीते ! दिलो में आकर
लोगों को सब्र का पाठ पढ़ाना
जैसे तुम बसी हो उर राम के
वैसे प्रिय प्रेम का दीप जला जाना
हे माँ ! लक्ष्मण प्रिय भक्त तेरे
भाव हर भाई में यह जगाना
न हो बँटवारा भाई -भाई में
दीप वह जला माँ तुम जाना
हे माँ सीते! खील खिलोने की
हर गरीब जनों पर बारिशें हो
हृदय में मधु मिठास को घोल
शब्द शब्द को मधु बना जाना
दीप जलते अनगिनत दीवाली पर
राकेट जैसे जाता है दूर गगन तक
जाति-पाति धर्म की खाई को पाट
सबके हृदय विशाल बना जाना
डॉ मधु त्रिवेदी