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30 Oct 2023 · 2 min read

#पुकार

🙏समूची मानव जाति के लिए प्रकाशस्तम्भ श्री गुरु नानकदेव जी महाराज के श्री-चरणों में सादर समर्पित है यह कविता।

मेरी मातृभाषा पंजाबी और राष्ट्रभाषा हिन्दी है। अतः मैं दोनों भाषाओं में लिखता हूँ। प्रस्तुत कविता की भाषा पंजाबी और लिपि देवनागरी है।
✍️

★ #पुकार ★

जिस जिस जपया नाम जी
सोई-सोई उतरया पार
मैं जगत तमाशा वेख के
न कुझ कह सकां
न चुप रह सकां
करदा हां एहो पुकार . . . . .

पलंगां तों लह गई निवार मेरे साईयां
मंज्जे किसे वी रुत्त आउंदे नहीं बाहर मेरे साईयां
वड्डयां दा हौला होया भार मेरे साईयां
खेतां नूं खा गई वाड़ मेरे साईयां

कौम दे आगूआं नूं लाज नहीं आउंदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

धरमहीन होयै राजधरम मेरे साईयां
अक्खां दी लह गई शरम मेरे साईयां
सच दा रह गया भरम मेरे साईयां
कूड़ दा बजार गरम मेरे साईयां

गाईयां दे पुत्तां दी चीख धुरां तक जांदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

विछड़ गए पंजे आब मेरे साईयां
किताबां च रह गई रबाब मेरे साईयां
मेलयां दी रह गई याद मेरे साईयां
रोटी विचों मुकया स्वाद मेरे साईयां

पिंडयां दे पसीने दी महक नहीं भाउंदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

कलम दवात गई रुल मेरे साईयां
माँ नूं माँ-बोली गई भुल मेरे साईयां
रिश्तयां दा पै गया मुल मेरे साईयां
घड़यां दा पाणी गया डुल्ल मेरे साईयां

परदेस गयां दी याद नहीं सताउंदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

अज्ज आपणा धौण फड़े मेरे साईयां
गल इक दूजे दी न जरे मेरे साईयां
दुख दुखियां दे कौण हरे मेरे साईयां
भुक्खयां लई रीठे मीठे कौण करे मेरे साईयां

नीले-पीले चोलयां अंदरों बोअ भुक्की दी आउंदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

सुणयै उदों वी है सन पाप मेरे साईयां
ताहियों रोटी विचों वगदा सी लहू आप मेरे साईयां
कुरलाउंदी खलकत नूं खवरे केहड़ा सी स्राप मेरे साईयां
रब दे दिल नूं कुरेदया सी तूं आप मेरे साईयां

अज्ज दे दिन कोई ऐसी हस्ती नज़र नहीं आउंदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

अज्ज पुत्त तों पयो शरमाए मेरे साईयां
जंमण वाली नूं धी चिंग्घे चढ़ाए मेरे साईयां
मेहता कालू जी दे पुत्त मां तृप्ता दे जाये मेरे साईयां
भैण नानकी दे वीर तैनूं ख़लक बुलाए मेरे साईयां

श्रीचंद जी जोगी हो गए लछमीदास लंमियां राहां दे पांधी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी . . . . .

जल-थल होयै चार-चुफेरे मेरे साईयां
जिंद फस गई घुम्मण घेरे मेरे साईयां
करनेआं जतन बथेरे मेरे साईयां
प्रकाश बिना हुण तेरे मेरे साईयां

एह धुंध दी चादर मिटदी नज़र नहीं आउंदी
बाबा ! पाप दी जंज हुण काबलों नहीं आउंदी !

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Punjabi
139 Views

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