हाइकु – डी के निवातिया
हाइकु – प्रकृति
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ठूंठ सा खड़ा,
फिर से खिलने को,
जिद पे अड़ा !!
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भू माँ से जुड़ा,
मरुदेश में खड़ा,
जर्जर वृक्ष !!
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अकेला खड़ा,
प्रकृति को बचाता
मरू में ठूंठ !!
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प्रहरी बन,
बंजर में तैनात,
आक का पेड़ !!
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प्रकृति प्रेमी,
ऊसर में खिलता
अमलतास !!
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स्वरचित : डी के निवातिया