हर मोड़ पे उन का हमारा सामना होने लगा – संदीप ठाकुर
हर मोड़ पे उन का हमारा सामना होने लगा
अब रोज़ ही ये ख़ूबसूरत हादसा होने लगा
हर इक अदा अंदाज़ में ऐसी कशिश है आप में
जो भी मिला है आप से वो आप का होने लगा
मुश्किल बहुत था चुप रहूँ सोचा बहुत कुछ न कहूँ
पर बात लब पे आ गई तो फिर गिला होने लगा
इक शख़्स था हम ने जिसे चाहा बहुत पूजा बहुत
पहले तो वो पत्थर हुआ फिर देवता होने लगा
थीं बस ज़रा सी दूर तक ही इस सफ़र में मुश्किलें
इक बार जब हम चल पड़े तो रास्ता होने लगा
देखा अलग सोचा अलग समझा अलग रस्ता अलग
नज़दीक तो हम थे बहुत पर फ़ासला होने लगा
वो दूध जैसा गोरा-पन था बस उसी की छाँव में
वो जब गया तो धूप में मैं साँवला होने लगा
संदीप ठाकुर