औरत की अभिलाषा
नहीं चाहिए मुझे
काजल वाली सुरमयी अंखियां
मुझे चहिये
इन आँखों में झिलमिलाते सतरंगी स्वप्न
नहीं चाहिए मुझे
अपने सपनों के मरने की उदासी छिपाने के लिए पोते जाने वाला पाउडर
मुझे चाहिए
वो हिम्मत जो अश्रु का कारण ही मिटा दे
नहीं चाहिए मुझे
किसी को लुभाने के लिए अपने चेहरे पर लीपापोती
मुझे चाहिए
ऐसा साथी जिसके होने से मेरा चेहरा निस्तेज ही न हो और नैसर्गिक सौंदर्य झलक पाए
नहीं चाहिए मुझे
देवी की पदवी
मुझे चाहिए
अपने बोलने, कहने, सुनने, पढने, बढने का अधिकार
नहीं चाहिए मुझे देवता
मुझे पशुवत टोरने और चाकरी के लिए
मुझे चाहिए
एक जीवनसाथी जो हर कदम पर साथ चल सके
नहीं चाहिए मुझे
बीवी का गुलाम
मुझे चाहिए वो
जो पैसे से न सही पर मन से सहयोग करे और मेरे आगे बढने पर हर्षित हो
नहीं चाहिए मुझे
मैं और तुम में बांटने वाला समाज
मुझे चाहिए अपना
हम सब के साथ वाला समाज
वो बगिया जिसमें हर रंग के फूल खिले हों
नहीं चाहिए मुझे
जिस कोख से जन्मे उसी को लात मारने वाले रक्षक भक्षक
मुझे चाहिए
बराबरी में विश्वास करने वाले बंधु और साथी
नहीं चाहिए मुझे
सोने के पिंजरे में बाहरी सौंदर्य का जादू
मुझे चाहिए
एक सुरक्षित घर और महफूज़ अपने वज़ूद का एहसास
नहीं चाहिए मुझे
पल पल हिंसा का भय
मुझे चाहिए
स्वछंद हवा में उड़ान की सौगात
नहीं चाहिए मुझे
कि किसी के कंधों का बोझ बनूं
मुझे चाहिए कि
अपने पैरों पर खड़ी हो मुकद्दर अपना खुद लिखूं
नहीं चाहिए मुझे
संकीर्ण कुंठित मज़ाज़ी खुदा
मुझे चाहिए
मुझ पैर विश्वास करने वाला आत्मविश्वासी शोहर
नहीं चाहिए मुझे
मेरे शरीर को नाप टोल कर बेड़िया डालने वाला पति
मुझे चाहिए
मुझ पर नाज़ करने वाला हमराही हमसफ़र
नहीं चाहिए मुझे
अपनी कोताहियों का दोषारोपण मुझ पर करने वाला
मुझे चाहिए
अँधेरे में भी मेरे साथ मिलकर दीपक जलने वाला
नहीं चाहिए मुझे
लड़कियों के चरित्र को मापने वाली दुनिया
मुझे चाहिए कि
मैं खुद अपने लिए न्याय और स्वतंत्रता की परिभाषा घड़ूं।।
©️ रचना ‘मोहिनी’