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25 May 2017 · 1 min read

*हर खुशी माँग ली*

हर खुशी माँग ली दोस्तों के लिये!
खैर-मकदम किया दुश्मनों के लिये!!
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
प्यार से हैं सभी काम बनते यहाँ!
ज़िंदगानी नहीँ नफ़रतों के लिये!!
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रोज़ धरने करें कौम के नाम पर!
ये मुनासिब है बस शातिरों के लिये!!
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जल रहे हैं दिये आस के अब तलक! कोई चारा कहाँ आँधियों के लिये!!
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कुरबतें बन गई हैं सभी दूरियाँ!
बंद रस्ते हुए फासलों के लिये!!
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
एक तरफा करें फैसला केस का!
गैर -मुमकिन है ये मुंसिफों के लिये!!
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चंद लफ्जों में सारा समां बांध दो!
ये मुसाफ़िर कहे शायरों के लिए!!
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
9034376051

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