Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jan 2024 · 3 min read

।।अथ श्री सत्यनारायण कथा चतुर्थ अध्याय।।

ध्यान पूर्वक सुनो बन्धुओं, आगे की कथा सुनाता हूं।
सत्य नारायण कथा सत्य की, बन्धु तुम्हें सुनाता हूं।।
मंगलाचरण किया साधु ने, घर चलने तैयार हुआ।
धन संपत्ति नावों में भर,नाव में अपनी सवार हुआ।।
सत्य परखने श्रीहरि ने, दण्डी(संन्यासी )का वेश बनाया।
प्रश्न कर दिया साधु वैश्य से,नाव में क्या भरवाया।।
धन के मद में साधु बोला, क्या तुमको धन लेने का मन है।
लता पता भरा है नावों में, नावों नहीं भरा धन है।।
सुनकर असत्य कुटिल वाणी,दणडी स्वामी मुस्काए।
बोले तेरा बचन सत्य हो,जो बोला वो हो जाए।।
दण्डी स्वामी वचन बोल, सागर तट पर बैठ गए।
साधु का असत्य न छूटा,मन ही मन में डूब गए।।
सत्य नारायण की माया से,धन लता पता हुआ सारा।
गश खाकर गिर पड़ा साधु, आंखों में छाया अंधियारा।।
करने लगा विलाप साधु,ये कैसी माया है।
किसने हरण किया धन,साधु सोच नहीं पाया है।।
जामाता बोले साधु से,ये दण्डी स्वामी की माया है।
कौन समझ सकता है, ईश्वर किस रूप में आया है।।
उठो चलो दण्डी की शरण में, बारंबार क्षमा मांगों।
शीघ्र छोड़ दो असत आचरण, साधु अब जागो जागो।।
पहुंच गए दण्डी के पास, जाकर दण्ड प्रणाम किया।
बारंबार क्षमा मांगी,दीन भाव से पश्चाताप किया।।
हे नाथ दया कर क्षमा करें,हम मूरख और अज्ञानी हैं।
जान न पाए देव भी तुमको,हम साधारण प्राणी हैं।।
भ्रष्ट प्रतिज्ञा असत वचन से, तुमने कष्ट सहे हैं।
नहीं रहे वचनों पर दृढ़,जो तुमने कभी कहे हैं।।
हे भगवान तुम्हारी माया ,देव भी न पहचान सके।
माया मोह जनित नर नारी, कैसे आपको जान सकें।।
हे नाथ हमें क्षमा कर दो, अब सत्य व्रत न छोडूंगा।
कथनी-करनी में अब अंतर, कभी नहीं पालूंगा।।
भ़ष्ट प़ितिज्ञा असत वचन से, तुमने कष्ट सहे हैं।
भूल गए संकल्प वचन,जो तुमने कभी कहे हैं।।
लोभ मोह अज्ञान विवश,जो राह भटक जाते हैं।
असत कर्म के पापों में, जीवन व्यर्थ गंवाते हैं।।
लौकिक और पारलौकिक जीवन, कष्टों में घिर जाते हैं।
न स्वयं को ही पहचान सके,न मुझको ही पाते हैं।।
दण्डी वेशधारी करुणाकर ने, साधु वैश्य पर कृपा करी।
जहां लता पता दिखते थे, वो धन से हो गई भरी भरी।।
चला प्रणाम कर साधु वैश्य,निकट नगर के पहुंच गया।
अपने आने का संदेशा,दूत के हाथों भेज दिया।।
दूत ने साधु की भार्या को,हाथ जोड़ प्रणाम किया।
जामाता सहित साधु के आने का,शुभ संदेश दिया।।
सत्य नारायण की पूजा रत थीं, दोनों मां और वेटी।
खुश खबरी से मां वेटी के, मन में खुशियां फूटीं।।
लीलावती ने कहा वेटी से, मैं दर्शन करने जाती हूं।
पूजन तुम सम्पन्न करो, जब-तक मैं वापस आतीं हूं।।
कलावती भी जल्दी में थी, जल्दी से पूजन सम्पन्न किया।
विन प्रसाद लिए ही कलावती ने,पति से मिलने प्रस्थान किया।।
खंडित किया नेम व्रत कथा का, सत्यनारायण रुष्ट हुए।
नाव सहित कलावती के पति, प्रभु माया से अदृश्य हुए।।
हाहाकार मचा तट पर,सबके सब आश्चर्य चकित हुए।
करुण विलाप से गिरे धरा पर,न जाने किस देव के कोप हुए।।
कौन जान सकता है माया प्रभु की,हे नारायण राह दिखाओ।
हम जैसे भूले भटकों को, भगवन पार लगाओ।।
विना पति के कन्या मेरी,चिता में जलने को तैयार है।
हे नाथ दया कर दुख से निकालो, दारुण दुख में परिवार है।।
जो भी है भगवन भूल चूक, क्षमा करो हे कृष्ण मुरारी।
बीच अधर में फंसी हुई है, नैया नाथ हमारी।।
निष्ठा और विश्वास से प्रभु हम, निशदिन तुमको ध्याएंगे।
नेम नियम आचार और व्रत, जीवन भर नहीं भुलाएंगे।।
द्रवित हो गए दीनदयाल,नभ से आकाश वाणी हुई।
तेरी कन्या हे साधु, मेरे प्रसाद त्याग से दुखी हुई।।
घर जाकर प्रसाद पाए, दारुण दुख मैं हर लूंगा।
सभी मनोकामनाएं पूरी,पल भर में ही कर दूंगा।।
छलक पड़े खुशी के आंसू, प्रेम न हृदय समाई।
साधु वैश्य की जीवन गाथा, ऋषियों तुम्हें सुनाई।।
धन वैभव संतान और सुख,साधु वैश्य ने पाया।
धर्माचरण और सत् व्रत में, जीवन साधु ने विताया।।
आयु पूरी कर मृत्यु लोक में, स्वर्ग लोक में सुख पाया।।
।।इति श्री स्कन्द पुराणे रेवा खण्डे सत्यनारायण व्रतकथायां चतुर्थ अध्याय सम्पूर्णं।।
।।बोलिए सत्य नारायण भगवान की जय।।

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 87 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सुरेश कुमार चतुर्वेदी
View all
You may also like:
मेरी मायूस सी
मेरी मायूस सी
Dr fauzia Naseem shad
वक्त गिरवी सा पड़ा है जिंदगी ( नवगीत)
वक्त गिरवी सा पड़ा है जिंदगी ( नवगीत)
Rakmish Sultanpuri
गए थे दिल हल्का करने,
गए थे दिल हल्का करने,
ओसमणी साहू 'ओश'
मुझे सहारा नहीं तुम्हारा साथी बनना है,
मुझे सहारा नहीं तुम्हारा साथी बनना है,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
2460.पूर्णिका
2460.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
है कहीं धूप तो  फिर  कही  छांव  है
है कहीं धूप तो फिर कही छांव है
कुंवर तुफान सिंह निकुम्भ
॰॰॰॰॰॰यू॰पी की सैर॰॰॰॰॰॰
॰॰॰॰॰॰यू॰पी की सैर॰॰॰॰॰॰
Dr. Vaishali Verma
सुंदरता के मायने
सुंदरता के मायने
Surya Barman
रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
रोजी न रोटी, हैं जीने के लाले।
सत्य कुमार प्रेमी
माँ
माँ
Dr Archana Gupta
कौन कितने पानी में
कौन कितने पानी में
Mukesh Jeevanand
"सुर्खी में आने और
*Author प्रणय प्रभात*
*बस यह समझो बॅंधा कमर पर, सबके टाइम-बम है (हिंदी गजल)*
*बस यह समझो बॅंधा कमर पर, सबके टाइम-बम है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
पावस
पावस
लक्ष्मी सिंह
समंदर चाहते है किनारा कौन बनता है,
समंदर चाहते है किनारा कौन बनता है,
Vindhya Prakash Mishra
ख्वाहिशों की ना तमन्ना कर
ख्वाहिशों की ना तमन्ना कर
Harminder Kaur
****शिव शंकर****
****शिव शंकर****
Kavita Chouhan
साहब का कुत्ता (हास्य-व्यंग्य कहानी)
साहब का कुत्ता (हास्य-व्यंग्य कहानी)
दुष्यन्त 'बाबा'
दीवाली
दीवाली
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
मोहब्बत का ज़माना आ गया है
मोहब्बत का ज़माना आ गया है
Surinder blackpen
सब अपनो में व्यस्त
सब अपनो में व्यस्त
DrLakshman Jha Parimal
सुशब्द बनाते मित्र बहुत
सुशब्द बनाते मित्र बहुत
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
शुभ रात्रि मित्रों
शुभ रात्रि मित्रों
आर.एस. 'प्रीतम'
"सहर देना"
Dr. Kishan tandon kranti
मुस्कराओ तो फूलों की तरह
मुस्कराओ तो फूलों की तरह
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
मैथिली पेटपोसुआ के गोंधियागिरी?
मैथिली पेटपोसुआ के गोंधियागिरी?
Dr. Kishan Karigar
घणो लागे मनैं प्यारो, सखी यो सासरो मारो
घणो लागे मनैं प्यारो, सखी यो सासरो मारो
gurudeenverma198
विद्यार्थी के मन की थकान
विद्यार्थी के मन की थकान
पूर्वार्थ
कलयुग मे घमंड
कलयुग मे घमंड
Anil chobisa
मंजिल
मंजिल
Kanchan Khanna
Loading...