हक हैं हमें भी कहने दो
हक़ हैं हमें भी कहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
हम भी करेंगे ऊँचा काम ,
मत रोको हमें ,
आगे बढ़ने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
नारी शक्ति हूँ ,
अबला नहीं ,
सबला बनके रहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
कर सकती हूँ मैं भी ,
हर एक काम ,
घर की दीवारों में ,
कैद न रहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
कुछ लम्हा ही सही ,
हम बेटियों को ,
खुल कर जीने दो ,
सपनों को साकार करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
तकलीफ होती हैं हमें भी ,
अब सहन हद पार हुआ,
हाथ बढ़ाओ हमें पीछे न रहने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
गर बेटा हैं संसार ,
तो बेटी हैं दुनियाँ ,
न खुद करो अंतर ,
जमाने को अब भेदभाव न करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
तोहमतो का सफर कब होगा खत्म ,
जो कहते हैं बेटियो को ,
चौखट पार न करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
यकीनन नमुहजजिब शख्स ही,
करते हैं अक्सर भेदभाव ,
समझदार की शख्सियत तो अब रहने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
बेटी हूँ बेटियों के दर्द से वाकिफ हूँ ,
हम बेटियों को बेदर्द न कहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
माजी,हाल,मुस्तकबिल हैं बेटियाँ ,
इन्हे सिर्फ नाम मात्र न रहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
हर दिन कहीँ न कही बेटियाँ,
प्रताड़ित होती हैं ,
आखिर क्यों इसी समाज से ,
आवाज़ आने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
आस पास के वातावरण में ,
बेटी की महिमा गायी जाती हैं ,
वही दूसरी ओर बेटी की,
आवाज दबाई जाती हैं ,
खामोश मत करो हमें ,
हमें भी वाचाल रहने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
बहुत हुआ तिरस्कार ,
मिले अब हमें पहचान ,
खुले आसमान में न सही ,
जमी पर ही हमें बने रहने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
घर में रोई नहीं ,
मकान में हँसी नहीं ,
यूँ घुटन में न मरने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
बन्दिशो में बँध कर,
रही ताउम्र बेटियाँ ,
अब बेटियों को,
जंजीर में न बंधने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
कुछ हम बेटियों का भी ,
हक और कर्तव्य हैं ,
अपने हक और कर्तव्य,
को भी अब पूरा करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
बेटा जाता अक्सर ,
एक शहर से दूसरे शहर ,
करता देश -विदेश का सफ़र,
हमें भी दुनिया देखने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
मलाल नहीं हमें समाज से
बेटी, परी ,गुड़िया , शहजादी,
राजकुमारी, देवी ,नारी,
और नारायणीय हैं ,
इसे गुलाम न बनने दो,
दुर्व्यवहार का शिकार न होने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो ।
मान सम्मान से ,
नज़र अँदाज न करो हमें ,
लाजवाब अँदाज मे रहने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
हम खुद एक ख़िताब हैं ,
बंद किताब न बनने दो ,
घरेलू हिंसा, असमानता,
लिंग भेद न होने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
जालिमों के जुल्म पर ,
हम भारी पड़ जाये ,
कुछ ऐसा जुनून खुद में रहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
अब कोई बेटी मुश्किलों में न पड़े ,
सारी बेटियों को एकजुट होकर,
संकल्प करने दो,
हमे बिटियाँ बन के जीने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
माँ दुर्गा, माँ काली, माँ आमिना, माँ फातिमा,
फिर क़्यो हम बेटियाँ लाचार,
सर्व शक्ति, भक्ति हैं हम,
खुद की शक्तियों को सलाम करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
दुनियाँ में आने से पहले,
और ताउम्र साजिशे करते हो,
हमें मिटाने की ,
विनती हैं वक्त से पहले ,
मिट्टी में हमें न मिलने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
जीते जी मरने, मारने की खबरें फैलाते हो,
आखिर क्यों बेटी से इतना घबराते हो,
मासूमियत को सलाम न सही ,
सलामती से रहने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
अब वक्त हैं ,
डट कर जीने के लिए ,
मत रोको हमें ,
गर आ जाएँ बात अस्तित्व पर ,
राक्षसों का वध करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
मेरे अल्फाज़ो को तराना मत समझो ,
बेटियों के दर्द मे उभरी ,
कलमकारी ही रहने दो ,
हमारी जय -जयकार न सही ,
चैन सुकून मे रहने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
जमी -आसमान, दिन- रात,
की दूरी जैसी ,
हो गयी हैं बेटी ,
फासला अब सिमटने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
जितना आसान था,
उतना कठिन हो गया ,
अब समझना बेटी के जज़्बातो को,
अब मन की बात करने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
चारो ओर अँधेरा ,
बेटी के मुककदर में ,
अब उजाले की मशाल जलने दो ,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
माना कि मैं “शमा “हूँ ,
पर हूँ भारत देश की बेटी,
मुझे जलाओ नहीं ,
शिक्षा की रोशनी करने दो,
बेटी हूँ हमें भी शान से जीने दो।
🇮🇳जय हिंद जय भारत 🇮🇳
शमा परवीन बहराइच उत्तर प्रदेश