हंगामा कर दूंगा
मैं सर – ए – बज़्म में हंगामा कर दूँगा
नाम तेरा लूंगा और एक शेर पढ़ दूँगा ।
मैं नही करूँगा बाते इश्क़ में बड़ी – बड़ी
हां , तेरे लिए चाय बना दिया करूँगा ।
मैं तरन्नुम में करूँगा बयां हालात-ए-दिल
ग़ज़ल कहूँगा और किस्सा मुख़्तसर कर दूँगा ।
सताएगी तेरी याद जब भी बेहद मुझको
मैं बुझे चराग़ों को फिर से रोशन कर दूँगा ।
पूछेगा जब भी कोई राज़ मेरी कविता का
“चिंतन”, मैं नाम आधा करके उसे ना कर दूँगा ।
– चिंतन जैन