सुख
सुख तो बस इतना है,
जब पा लेने की चाहत ख़त्म हो जाए,
मन भर जाए अंदर की शांति से,
और मोह-माया से ऊपर उठ जाए,
जब टूट जाए यह बंधन मायावी,
दुःख घृणा का अस्तित्व मिट जाए,
सुख तो बस इतना सा है,
जब सब्र-शांति रूह तक समाए,
ज़रूरतें-चाहतें ख़त्म हो जाए,
मोह की दीवार भंग हो जाए,
जो है जैसा है, वैसा ही भाए,
जब मिट जाए प्यास सब पा लेने की,
और मन फ़क़ीरा हो जाए……