सिलसिले साँसों के भी थकने लगे थे, बेजुबां लबों को, रूह की खामोशी में थरथराना था।
उन गहराईयों से रिश्ता मेरा पुराना था,
दर्द भरी गलियों में हीं, तो मेरा ठिकाना था।
उजाले चुभते थे, आँखों में इस कदर,
की आंसुओं के साथ, हीं हमारा आशिकाना था।
हसरतों के शीशे पर चढ़ी थी, धूल की परतें,
और निगाहों ने बस अंधेरों को अपना माना था।
एहसास कुछ ऐसे सुन्न पड़े थे,
की भीड़ में गुम होकर भी, हमें तन्हा हीं चलते जाना था।
ख़्वाब टूटे नहीं थे, वो तो चकनाचूर हुए थे,
ख्वाहिशों को हक़ीक़त की जमीं से, कुछ ऐसे टकराना था।
जिस सितारे ने दुआएं देने को झोली थी खोली,
उस दुआ को पूरी करने को, उसे हीं टूट जाना था।
सिलसिले साँसों के भी थकने लगे थे,
बेजुबां लबों को, रूह की खामोशी में थरथराना था।
जिस तूफां ने ना जाने कितने आशियाने उजाड़े थे,
फिर उसी को एक डूबी कश्ती को, मेरे किनारों तक पहुँचाना था।
बंधनो को तोड़ जब, चुना था सफ़र तन्हा,
क़िस्मत को एक बार फिर, धड़कनों को आज़माना था।
मोहब्बत हाथ थामे भी, धुंधलाई सी खड़ी थी,
और समझदारी का नक़ाब डाले, हमें बस मुस्कुराना था।