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30 Jan 2024 · 1 min read

* खिल उठती चंपा *

** नवगीत **
~~~~~~~~~~~
खिल उठती चंपा

रोज सुबह,
खिल उठती चंपा।

इस पुण्य धरा पर होती पोषित,
खूब फैलती और फूलती।
हरियाली साड़ी धारण कर,
खड़ी खड़ी इठलाती जाती।

खिले खिले सुन्दर फूलोँ की,
जग को भेंट चढ़ाती चंपा।

हरी भरी चंपा डाली पर,
श्वेत पुष्प जंचते है खूब।
देखो जहां खड़ी है चंपा,
बिछी हुई मखमल सी दूब।

सुन्दर कोमल भावोँ को तब,
नए अर्थ दे जाती चंपा।

रजत पुष्प में स्वर्णिम आभा,
चंपा ने सूरज से पाई।
चंद्रदेव ने भी जी भरकर,
स्वच्छ चाँदनी बिखराई।

इक सुन्दर देवी सी लगती,
पावनता की मूरत चंपा।
~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य।

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