सिर्फ तुम्हारे खातिर
मुझको तो मिल गया था,
साथी और भी सफर में,
लेकिन थाम नहीं सका मैं उसका हाथ,
बढ़ नहीं सका उसके साथ एक कदम भी,
और छोड़ दिया मैंने उसको,
सिर्फ तुम्हारे खातिर।
मुझको भी बहुत अजीब लग रहा था,
पहली बार जब वह मुझको मिला था,
इच्छा थी उस पर खुशियां बरसाने की,
उसको दिल में बसाने की,
मगर दे नहीं सका दिल उसको,
सिर्फ तुम्हारे खातिर।
मैं खड़ा था तुम्हारी दहलीज पर,
तुमसे मिलने की प्रतीक्षा में,
वो चाह रहे थे मुझसे जानना,
तेरे और मेरे रिश्ते के बारे में,
मगर कुछ नहीं कह सका मैं,
सिर्फ तुम्हारे खातिर।
अब पराजित हो चुका हूँ मैं,
और लौट रहा हूँ फिर से,
बदनाम होकर तुमसे तेरे घर,
नहीं रहा मैं अब आज़ाद,
मैं बना रहा हूँ एक दुनिया,
सिर्फ तुम्हारे खातिर।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)