सिंदूरी इस भोर ने, किरदार नया फ़िर मिला दिया ।
क़दम ठहरे रहे और राहों ने अलविदा कह भुला दिया,
सिमटने की ख़्वाहिशों ने, फासलों को कुछ यूँ बढ़ा दिया।
इश्क़ के उजालों ने, आँखों से दग़ा किया,
मौत के अंधेरों में, यूँ धड़कनों को सुला दिया।
ठगना था चाहतों को मेरे, तो वेश जोगी का बना लिया,
मेरी लक़ीरों की तस्करी की, और मुझे हीं लुटेरा कह सज़ा दिया।
टूटे आईने के टुकड़ों में, अक्स को तो बिखरा दिया,
उन टुकड़ों ने भी बड़े शिद्दत से, मुझे तन्हाई से मेरी मिलवा दिया।
खुशी की मृगतृष्णा में, प्रेम मरुभूमि का जगा दिया,
जलते पाँवों से आशिक़ी हुई यूँ, की दर्द ने सुकूं दिखा दिया।
मिलन की रिवायतों ने, बिछड़न से सौदा करा दिया,
नमी आँखों में ठहरी रही, और होंठों ने मुस्कराहट से वफ़ा किया।
रूहानी मोहब्बत की दास्ताँ को, एक भूला क़िस्सा बना दिया,
साहिलों पर जो नाम लिखे थे, उन्हें लहरों ने ख़ुद में समा लिया।
सिंदूरी इस भोर ने, किरदार नया फ़िर मिला दिया,
अधूरी कहानी के आसमां को, क्या क्षितिज नया फ़िर दिखा दिया?