*सावन का मतलब (छोटी कहानी)*
सावन का मतलब (छोटी कहानी)
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“सावन का क्या मतलब है ? कुछ समझाओगे ? “-मैंने उससे प्रश्न किया । वह बाईस-तेईस साल का नवयुवक था । डिग्री कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रहा था । मुझसे कह रहा था कि आज सावन का पहला सोमवार है । उसके मुँह से यह सुनकर मुझे अच्छा लगा लेकिन न मालूम क्यों मैंने उससे उपरोक्त प्रश्न कर दिया। वह हल्का सा हँसा और फिर कहने लगा “सावन का भी कोई मतलब होता है ? यह तो एक धार्मिक त्योहार होता है । हर सोमवार को सावन में विशेष रूप से मनाया जाता है ।”
“फिर भी सावन का कुछ मतलब तो होता होगा ?”
“हाँ! क्यों नहीं । “कुछ सोचकर उसने कहा -“यह बारिश के मौसम को दर्शाता है। प्रकृति की हरियाली के प्रति हमारी समीपता को प्रकट करता है । ”
“कुछ हद तक तो सही कह रहे हो और सचमुच सावन की आत्मा भी इसी भावना में निवास करती है । लेकिन बताओगे कि सावन एक महीने क्यों चलता है ?”
इस प्रश्न पर वह कुछ चकराया और सोच कर बोला ” हां हां ! मेरे ख्याल से यह कोई महीना होता है । इसीलिए सावन एक महीने चलता है । लेकिन मुझे उसके बारे में ठीक-ठीक पता नहीं । यह तो व्रत-त्यौहार वगैरह निर्धारित करने की बातें होती हैं ।”
“देखो तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। सावन सचमुच एक महीने का नाम है । जैसे ईसवी सन के कैलेंडर में जनवरी ,फरवरी ,मार्च ,अप्रैल आदि कुल बारह महीने होते हैं ठीक उसी प्रकार विक्रम संवत में सावन-भादो आदि कुल बारह महीने होते हैं ।”
वह उत्साह से भर उठा । कहने लगा “थोड़ा-थोड़ा तो मुझे इनके बारे में अंदाजा था लेकिन ठीक से बारह महीनों के नाम मुझे नहीं पता । हमारे सारे त्यौहार वैसे विक्रम संवत के इन्हीं बारह महीनों के आधार पर मनाए जाते हैं । दुर्भाग्य से हमें न विक्रम संवत के बारे में पता है और न विक्रम संवत के बारह महीनों के बारे में हम जानते हैं ।”
मैंने उसे बताया -“देखो ! विक्रम संवत ईसवी सन से भी पुराना है । लगभग सत्तावन वर्ष पुराना । भारत में विक्रम संवत के अनुसार ही अंग्रेजों के आने से पहले सारा राजकाज और जनता का कामकाज चलता था । अब तो हम लोग ईसवी सन् के अलावा और कुछ भी नहीं जानते । अंग्रेजों के आने के बाद हम अपनी संस्कृति और अपने महीने और वर्ष तक भूल गए । देखो बारह महीने होते हैं । चैत ,बैसाख ,जेठ ,आषाढ़, सावन ,भादो ,क्वार ,कार्तिक ,अगहन ,पूस, माघ ,फागुन । हर महीने के दो पखवाड़े होते हैं । महीने के अंत को पूर्णमासी कहते हैं । इस दिन चंद्रमा पूर्ण गोलाकार आकाश में चमकता है । उसके अगले दिन से नया महीना शुरू हो जाता है । चंद्रमा धीरे-धीरे घटता है और एक पखवाड़े अथवा पक्ष में घटते – घटते शून्य पर आ जाता है । इसे अमावस्या कहते हैं । अमावस्या के अगले दिन से चंद्रमा फिर बढ़ने लगता है । इसे दूसरे पक्ष की शुरुआत कहते हैं ।”
“अरे वाह अंकल ! आपने तो बड़ी मजेदार कहानी सुनाई । चाँद के बढ़ने और घटने की प्रक्रिया तो बहुत दिलचस्प है । और इसका संबंध हमारे हिंदी महीनों से भी है तथा त्योहारों से भी है । यह तो और भी आकर्षक बात है ।”
“देखो ,दीपावली कार्तिक की अमावस्या को होती है। गंगा-स्नान कार्तिक की पूर्णिमा को मनाया जाता है ।”
वह मेरी बात सुनते सुनते सहसा उदास हो गया । कहने लगा “इन महीनों का संबंध हमारे देश से है । फिर भी हमारे स्कूलों में यह सब हमें क्यों नहीं पढ़ाया जाता ?”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451