सादर सदैव पूजनीय होते
भावनाओं के अनुकूल ही
निर्माण व्यक्तित्व का होता है
ना हो उपेक्षा ना हो अपमान
सहज स्वभाव जिनका होता है.
सृष्टि के हर एक कण में
रहस्य यही तो समाया है
मोह-युक्त जर्जर अवसाद
नित्य ही मन को भरमाया है.
अपनी गोद में हमें बिठाकर
कभी जिन्होंने दुलारा था
जिनकी हर विश्वास ने हमको
हर मुश्किल से उबारा था.
मूक करूणा का भाव लिए वो
हमें निहारते रहते हैं
पावन श्रद्धा प्रेम के लिए वो
पार्वण पर्व में आते हैं.
उनको तर्पण अर्पण करके
अटूट आस्था का देते आधार
स्मरण नमन करके पूर्वज का
आशीष प्राप्त करते हैं अपार.
सादर सदैव पूजनीय होते
रक्षक बनकर करते उपकार
जो स्वर्गस्थ हुए महात्मा
वो ईश रूप होते साकार.
भारती दास ✍️