साथ समय के चलना सीखो…
साथ समय के चलना सीखो।
नहीं किसी को छलना सीखो।
भोर तुम्हारे द्वार खड़ी है,
नवसृजन की ये घड़ी है।
अनथक तुम बस चलते जाना,
परीक्षा आगे बहुत कड़ी है।
रुख हवा का बदलना सीखो।
साथ समय के चलना सीखो।
गतिशीलता सीखो नदी से,
ठोकर खाकर भी चल देना।
सीखो तरु से सहनशीलता,
पत्थर खाकर भी फल देना।
दीप सरिस तुम जलना सीखो।
साथ समय के चलना सीखो।
बाल सूर्य जैसे तम हरता,
आग उगलने का दम भरता।
चढ़ता नभ में धीरे – धीरे,
खुद तपता जगहित श्रम करता।
तुम भी अरि को दलना सीखो।
साथ समय के चलना सीखो।
चाँद-सितारे-सूरज नभ में,
आते-जाते बारी-बारी।
सूरज ढले चाँद की खातिर,
तड़के चाँद करे तैयारी।
औरों के हित ढलना सीखो।
साथ समय के चलना सीखो।
– © सीमा अग्रवाल
“काव्य पथ ” से