समय एक समान नहीं रहता
मोहन और सोहन दोनों साथ-साथ एक ही विद्यालय में पढ़ते थे । मोहन गरीब था, उसके पिताजी दूसरों के खेत पर काम कर ,अपने परिवार का पालन पोषण करते थे । मोहन की अवस्था अभी कोई 13-14 बरस की होगी, किन्तु उसे अपने घर की स्थिति का पूरा ज्ञान था । वह हमेशा विद्यालय से आने के बाद घर के छोटे- बड़े कामो में हाथ बँटा लेता था । मोहन पूरी लगन से पढ़ाई करता था ।
दूसरी ओर सोहन एक अमीर घर से था । उसके पिताजी शहर में बड़े पद पर कार्य करते थे । सोहन के घर नौकर- चाकर की कमी नहीं थी । बंगला और अच्छी – अच्छी गाडियाँ थी । सोहन के पिताजी ईमानदार और कर्मठ अफसर थे । वह सोहन को हमेशा समझाते रहते थे, किन्तु सोहन को इन बातों से कोई सरोकार नहीं था, उसकी आदतें बिगड़ती जा रही थी । कल की ही बात है, उसके बगीचे में काम करने वाले माली काका के बेटे ने एक फूल क्या तोड़ लिया, सोहन ने उसे बहुत मारा , बीच बचाव कर बेचारे को जैसे तैसे सोहन से छुड़वाया । सोहन का साथ देने वाले सारे मित्र भी उसको ऐसे कार्यो के लिए उकसाया करते थे । सोहन पढ़ने में कमजोर नही था, किन्तु जानबूझकर नहीं पढ़ता था ।
मोहन और सोहन दोनों दोस्त थे, किन्तु मोहन का व्यवहार बिल्कुल उससे नहीं मिलता था, मोहन सबकी मदद करने को तैयार रहता था । कल विद्यालय की बाई का लंच बाहर से कुत्ते ने झूठा कर दिया था, तब मोहन ने अपना लंच बाई को दे दिया था और स्वयं दिनभर भूखा रहा ।
विद्यालय के सभी शिक्षक मोहन की प्रशंसा करते थे, यह बात सोहन को खटकती थी । वह ऐसा कोई मौका नही छोड़ता था, जब मोहन का मजाक उड़ाने का मिलता था । एक दिन मोहन की शर्ट फ़टी हुई थी, उस दिन सोहन ने खूब खिल्ली उड़ाई थी । मोहन, सोहन की ,किसी भी बात का बुरा नहीं मानता था ।
एक दिन छुट्टी के दिन सोहन गाड़ी से अपने साथियों के साथ जंगल के रास्ते से गुजर रहा था । वह देखता है कि , मोहन खेत मे अपने पिता के साथ काम कर रहा है और मिट्टी से लथपथ है । सोहन और उसके मित्र पास आकर हँसते है, देखों- देखों मोहन भूत बना हुआ है, हा हा हा सब और अधिक हँसते है । मोहन , आज थोड़ा नर्वस हो गया, क्योंकि उसके पिताजी भी साथ थे । मोहन ने सोहन से कहा कि मित्र , मिट्टी तो हमारी माता है, उससे कैसा डरना । आज काम करेंगे तब ही देशवासियों का पेट भरेगा और देश उन्नति करेगा । समय करवट बदलता है, सभी दिन एक समान नही होते है ।
दस- पंद्रह साल बाद…..
मोहन बहुत बड़ा आदमी बन गया था । अपनी धागा मिल का संचालन करता था । उसके कारखाने में 300-400 कर्मचारी काम करते थे । आज कुछ कर्मचारियों की भर्ती हेतु बेरोजगार लड़के आए हुए थे, एक- एक कर केबिन में आते जा रहे थे, मोहन उनके दस्तावेज और व्यवहारिक ज्ञान की परीक्षा लेकर बाहर भेजता जा रहा था । अगले व्यक्ति को देखकर मोहन कुर्सी से उठ खड़ा होता है, सामने मैले कुचैले कपड़ो में मुँह लटकाए दुबले पतले शरीर वाला , और कोई नहीं बल्कि बचपन का मित्र सोहन था । मोहन उसे गले लगा लेता है । सोहन की आँखों से आँसू झर-झर बहने लगते है । मोहन के पूछने पर सोहन सारी बातें बता देता है कि उसकी हालत ऐसी, कैसे हो गयी । सोहन अपनी आप बीती में कहता हैं कि किस प्रकार उनकी हालत ऐसी हो गयी कि दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब हो रही है । जब तक सोहन के पापा की नौकरी थी, सब ठीक चल रहा था, सोहन को नशे की लत लग गयी थी । पैसों की कमी नहीं होने के कारण वह इस जुआँ/नशा/पार्टी इत्यादि का आदि हो गया था । सोहन के पिताजी यह सब देखकर बहुत दुःखी होते थे, उनके रिटायरमेंट के दो वर्ष के अंदर ही भगवान को प्यारे हो गए । माँ भी यह सदमा बर्दास्त नहीं कर पाई और छह मास की अवधि में वो भी सोहन का साथ छोड़ कर चली गयी । अब सोहन को रोकने टोकने वाला कोई नही था । नशे की आदत जमा पूँजी को निगल गई । सोहन कोई काम भी नहीं करता था, यहाँ तक कि अब उसकी बहनों ने भी मदद करना बंद कर दिया था । धीरे- धीरे घर , गाड़ी सब बिक गए ।
यह सब सुनाते- सुनाते सोहन आज फूट- फूट कर रोने लगा , उसे वह सब बातें याद आने लगी, जब वो मोहन का मजाक उड़ाता था । मोहन- सोहन दोनों मित्रों की आँखों में आँसू थे, दोनों एक दूसरे के गले मिलकर बहुत देर तक ऐसे ही खड़े रहें । सोहन को मोहन का ऐसे व्यवहार की बिल्कुल आशा नहीं थी, वो तो समझ रहा था कि मोहन उसे पहचानने से इंकार कर देगा , किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ । मित्रता का रिश्ता पवित्र प्रेम की तरह होता है, उसे कठिनाईयों की आँधी डिगा नहीं सकती है ।
आज सोहन को समझ आ गया था, कि समय एक समान नही रहता हैं । हमें हमेशा समय का सदुपयोग करना चाहिए ।
—-जेपी लववंशी