समंदर हो गया (गीतिका)
समंदर हो गया (गीतिका)
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
इस तरह बदलाव कितना उसके अंदर हो गया
जब समंदर से मिला, दरिया समंदर हो गया
(2)
एक बस मैं ही था जिसने जेब के पैसे गिने
कर्ज लेकर बाकियों का जश्न जमकर हो गया
(3)
पा लिया जिसने भी अपने आत्मतत्व विशेष को
मस्तियों में भर के फिर जैसे कलंदर हो गया
(4)
कोशिशें करने से हासिल क्या नहीं होता किसे
साधना में रत रहा जो भी धुरंधर हो गया
(5)
आदमी अच्छा-भला आजाद रहता था सदा
बाद शादी के मदारी वाला बंदर हो गया
————————————————
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र) मो. 9997615451