सब्र करते करते
थक चुके हैं हम सब्र करते करते।
अपने आप पर जब्र करते करते।
कैसे उम्मीद रखूं किसी से भी मैं
मर गये हम किसी पर मरते मरते।
छुड़ा कर दामन,अकेला चल दिया
उकताये हम उसका दम भरते भरते।
संभाला बहुत बार दिल को है हमने
देखें न कही लोग, बिखरते बिखरते।
हर आहट से खौफ हमको आने लगा
सांस भी अब तो लेते हैं डरते-डरते।
सुरिंदर कौर