Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jun 2020 · 2 min read

सबेरे का अंत

सबेरे का अंत
(मेरी बात:मुश्किल है अब जीना)

हर रोज
एक नया सबेरा आता तो है
पर मेरे लिए नही,
दुनिया के लिए,
मुझे तो जिंदगी
अंधेरा ही लगता है,
दिन सबके लिए शुरू होता है,
लेकिन मेरी जिंदगी
अब शुरू ही नही होती,
हां रोज मैं सुबह उठ तो जाता हूँ,
लेकिन शायद जाग नही पाता,
मेरी आँखें तो खुली रहती है,
लेकिन मैं कुछ देख नही पाता,
ये शायद मेरे,
कुछ न कर पाने का इनाम है,
जो अपनो ने दिया है,
क्योकि अभी कुछ कर नही रहा,
हां मैं इतना भी नकारा नही,
की कुछ करने के लायक ही नही,
भले ही किसी के लिए न सही,
अपने लिए तो नायक ही हूँ,
हां मुझे किसी से
शिकायत तो नही है,
पर अपनी जिंदगी से
मोहब्बत भी नही रही,
मेरी हालत क्या है
कोई नही जानता,
बस सबको अपनी ही पड़ी है,
अब तो लगने लगा है
इस दुनिया में,सबके लिए
मैं बोझ बन गया हूँ,
बीते कल की याद में रो पड़ता हूँ,
और आने वाले कल के बारे में,
सोचकर डर लगता है,
अब जो भी हो रहा है
अच्छा तो नही,
मुझे खुशियों की
आदत तो नही है,
फिर भी हमेशा
खुश दिखने की,
कोशिश तो करता हूँ,
क्योकि सबको दिखावा पसन्द है,
कभी कभी सपने में खो जाता हूं,
तो कभी हँसते हुए रो पड़ता हूँ,
मुझे कुछ ज्यादा नही,
बस थोड़ा सा प्यार चाहिये,
कोई प्यार से बात करले,
इतना ही बहुत है मेरे लिए,
हां नालायक ही सही मैं,
पर लायक बनना तो चाहता हूँ,
मुझे अब जिंदगी से प्यार नही,
मैं अब सबसे दूर होना चाहता हूँ,
मुझे नही पता,
मेरे जाने के बाद
लोग क्या सोचेंगे,
पर इतना तो पता है,
मेरे रहते तक हमेशा,
लोग मुझे कोशते ही रहेंगे,
और शायद मेरे जाने के बाद
मेरी लिखी बातों को,
कभी पढ़ेंगे तो,
मन मे कुछ विचार आएगा
उसे पढ़कर,
शायद कुछ अच्छा सोच लें,
हां ! था एक नालायक,
जो कुछ कहता नही था,
पर कुछ करना चाहता था,
लिखता था,
पर कोई समझ नहीं सका।।

– विनय कुमार करुणे

Language: Hindi
2 Comments · 271 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तुझसे है मुझे प्यार ये बतला रहा हूॅं मैं।
तुझसे है मुझे प्यार ये बतला रहा हूॅं मैं।
सत्य कुमार प्रेमी
दिन ढले तो ढले
दिन ढले तो ढले
Dr.Pratibha Prakash
ओ माँ... पतित-पावनी....
ओ माँ... पतित-पावनी....
Santosh Soni
भीड से निकलने की
भीड से निकलने की
Harminder Kaur
मौहब्बत क्या है? क्या किसी को पाने की चाहत, या फिर पाकर उसे
मौहब्बत क्या है? क्या किसी को पाने की चाहत, या फिर पाकर उसे
पूर्वार्थ
रमेशराज की पद जैसी शैली में तेवरियाँ
रमेशराज की पद जैसी शैली में तेवरियाँ
कवि रमेशराज
3024.*पूर्णिका*
3024.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जीने का हौसला भी
जीने का हौसला भी
Rashmi Sanjay
जरूरत से ज्यादा मुहब्बत
जरूरत से ज्यादा मुहब्बत
shabina. Naaz
ढूंढ रहा है अध्यापक अपना वो अस्तित्व आजकल
ढूंढ रहा है अध्यापक अपना वो अस्तित्व आजकल
कृष्ण मलिक अम्बाला
■ 2023/2024 👌
■ 2023/2024 👌
*Author प्रणय प्रभात*
मुझको कबतक रोकोगे
मुझको कबतक रोकोगे
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
पतझड़ तेरी वंदना, तेरी जय-जयकार(कुंडलिया)
पतझड़ तेरी वंदना, तेरी जय-जयकार(कुंडलिया)
Ravi Prakash
💐प्रेम कौतुक-398💐
💐प्रेम कौतुक-398💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
प्रियतमा
प्रियतमा
Paras Nath Jha
यदि केवल बातों से वास्ता होता तो
यदि केवल बातों से वास्ता होता तो
Keshav kishor Kumar
मजे की बात है ....
मजे की बात है ....
Rohit yadav
🌹 मैं सो नहीं पाया🌹
🌹 मैं सो नहीं पाया🌹
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
एहसास
एहसास
Vandna thakur
वक्त-ए-रूखसती पे उसने पीछे मुड़ के देखा था
वक्त-ए-रूखसती पे उसने पीछे मुड़ के देखा था
Shweta Soni
रंग जीवन के
रंग जीवन के
kumar Deepak "Mani"
शैलजा छंद
शैलजा छंद
Subhash Singhai
कोई अपनों को उठाने में लगा है दिन रात
कोई अपनों को उठाने में लगा है दिन रात
Shivkumar Bilagrami
सफ़र
सफ़र
Shyam Sundar Subramanian
काश - दीपक नील पदम्
काश - दीपक नील पदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
"संगठन परिवार है" एक जुमला या झूठ है। संगठन परिवार कभी नहीं
Sanjay ' शून्य'
मीठी वाणी
मीठी वाणी
Kavita Chouhan
अगर मेरी मोहब्बत का
अगर मेरी मोहब्बत का
श्याम सिंह बिष्ट
बड़ी होती है
बड़ी होती है
sushil sarna
मैं इक रोज़ जब सुबह सुबह उठूं
मैं इक रोज़ जब सुबह सुबह उठूं
ruby kumari
Loading...