सबूत ना बचे कुछ
बाँटो,,, बाँटो,,, बाँटो
जितनी जल्दी हो बाँटो
साबूत ना बचे कुछ
उतने हिस्से में बाँटो।
इंसान को बाँटो
घरों को भी बाँटो
दिलों को बाँटो
समाज को भी बाँटो
सारी दुनिया को बाँटो,
अगर बाँटते ना बने
तो महीन टुकड़ों में काटो।
प्रकाशित 46वीं काव्य-कृति :
‘वक्त की रेत’ से,,,,
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त।