सती प्रथा
भारतीयता की है पहचान
भारतीय संस्कृति संस्कार
होता परस्पर आदान प्रदान
पीढी को पीढी से संस्कार
भारतीय संस्कृति है समृद्ध
विभिन्न प्रथाएं भिन्न प्रभार
कुछ थी ऐसी हमारी प्रथाएँ
जिन पर आता है तिरस्कार
उन्ही में से ही थी एक प्रथा
सति प्रथा नामक था विकार
खड़े हो जाते आज भी रौंगटे
जब आते सति प्रथा विचार
देवी सती से मिला यह नाम
दक्षायनी भी वही सती नार
दक्ष पुत्री सती हो गई व्यथित
दक्ष किया पति शिव तिरस्कार
अग्नि कुंड में सती गई कूद
आत्मदाह कर बनी अवतार
जब पति हो जाता स्वर्गवासी
पत्नी को करते चिता सवार
पिला करके धतूरा ओर भांग
बेहोश कर संग लिटाते भरतार
दे देते जिंदा को संग मृत अग्नि
ना सुनते चीख चित्कार पुकार
शँखो बजा करते ऊँचा उदघोष
ना सुने चित्कार बनके लाचार
हो जाती थी लाचार स्त्री कुर्बान
यही था सती प्रथा आसार प्रचार
भारतीय पुरूष प्रधान संस्कृति
मूक दर्शक बन देखती तस्वीर
पैदा हुआ भारत में ब्रह्म समाजी
राजा राममोहनराय सृजनहार
जागरूक किया था पूर्ण समाज
आन्दोलन कर किया था मजबूर
पूछा सरकार से जटिल सवाल
पति मरे तो पत्नी का क्या कसूर
फिर क्यों करे यह सारा समाज
भार्या भरतार संग सती मजबूर
किया राजा राममोहनराय कमाल
न्याय दिलाया स्त्री को थी लाचार
पास कराया सतीप्रथा रोक कानून
बंद कर दिया सतीप्रथा सरकार
हुइ स्त्री कल्याणकारी यह कार्य
मिला स्त्रीरत्न को मान सम्मान
मिलि स्त्रीरत्न को मान सम्मान
सुखविंद्र सिंह मनसीरत