Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Apr 2023 · 7 min read

*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ: दैनिक रिपोर्ट*

संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ: दैनिक समीक्षा
दिनांक 11 अप्रैल 2023 मंगलवार
प्रातः 10:00 से 11:00 तक
_________________________
बालकांड दोहा संख्या 140 से दोहा संख्या 178 तक का पाठ हुआ ।
रवि प्रकाश के साथ पाठ में मुख्य भूमिका श्रीमती मंजुल रानी और श्रीमती पारुल अग्रवाल ने निर्वहन की।
मनु-शतरूपा की तपस्या, भगवान द्वारा पुत्र रूप में जन्म का वरदान, राजा प्रताप भानु रावण बना

भगवान की उपासना महाराज मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ने जिस प्रकार से की, उसका एक माध्यम बारह अक्षरों वाला मंत्र भी था। तुलसीदास जी लिखते हैं :-
द्वादश अक्षर मंत्र पुनि, जपहिं सहित अनुराग (दोहा संख्या 143)
12 अक्षर वाला यह मंत्र कौन सा है, यह हनुमान प्रसाद पोद्दार जी अपनी टीका में पाठकों को पता करना अत्यंत सुगम कर देते हैं । पोद्दार जी ने लिखा है कि यह मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय है । अगर पोद्दार जी की टीका नहीं होती तो 12 अक्षर का मंत्र तुलसीदास जी द्वारा उल्लिखित किए जाने पर भी उस तक पहुंचना पाठकों के लिए संभव नहीं था। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को संपूर्ण रामचरितमानस की टीका लिखने के लिए बारंबार धन्यवाद।
महाराज मनु और शतरूपा ने भगवान की जो उपासना की, उसे रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने हजारों वर्ष का तप बताया है। तुलसी लिखते हैं:-
एहि विधि बीते बरस षट, सहस बारि आहार
संवत सप्त सहस्त्र पुनि, रहे समीर अधार (दोहा संख्या 144)
तदुपरांत चौपाई में पुनः तपस्या की गहन साधना को इस प्रकार वर्णित किया गया है :-
वर्ष सहस दस त्यागेउ सोऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ।।
उपरोक्त विश्लेषण में छह हजार वर्ष की तपस्या जल का आहार करते हुए बताई गई है। सात हजार वर्षों की तपस्या केवल वायु का सेवन करते हुए बताई गई है। दस हजार वर्ष वायु का आधार भी छोड़कर एक पैर से खड़े होना बताया गया है । यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि सामान्य मनुष्य केवल सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है । इससे आगे की साधना सामान्य आहार-विहार के बलबूते पर संभव नहीं होती। नाशवान शरीर कितना भी संभाल कर रखो, सड़-गल जाएगा। ऐसे में केवल जल का आहार करने पर 6000 वर्ष की तपस्या तथा 7000 वर्षों की तपस्या केवल वायु के आधार पर समझाया जाना महत्वपूर्ण है। 10000 वर्ष तक जल और वायु दोनों का आधार छोड़कर किस प्रकार तपस्या संभव है, इसका व्यापक विश्लेषण तो इन दोहों और चौपाइयों में नहीं है लेकिन यह अनुसंधान की दिशा में वैज्ञानिकों को प्रेरित करने वाले तथ्य अवश्य सिद्ध होते हैं।
आगे की कथा में महाराज मनु और शतरूपा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें सगुण-साकार रूप में दर्शन देते हैं। भगवान के सगुण रूप में दर्शन का चित्रण बहुत सुंदर है। तुलसीदास ने मानो साक्षात सगुण रूप में परमात्मा का चित्र पाठकों के सामने उपस्थित कर दिया। तुलसी लिखते हैं :-
नील सरोरुह नीलमणि, नील नीरधर श्याम।
लाजहि तन शोभा निरखि, कोटि-कोटि सतकाम।। (दोहा संख्या 146)
इसमें भी वह सगुण परमात्मा के हाथ में धनुष और बाण को सुशोभित करना नहीं भूलते । तुलसी लिखते हैं :-
कटि निषंग कर सर कोदंडा (दोहा वर्ग संख्या 146)
अर्थात परमात्मा नीलकमल नीलमणि और नीले जलयुक्त बादलों के समान श्याम वर्ण के हैं। उनके हाथ में बाण और प्रसिद्ध कोदंड धनुष के साथ-साथ कमर में तरकश भी सुशोभित है।
महाराज मनु और शतरूपा भगवान के दर्शन-मात्र से ही संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने भगवान को पुत्र-रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा और भगवान ने उनकी बात मानी। तुलसी लिखते हैं की महाराज मनु ने भगवान से कहा :-
दानि शिरोमणि कृपानिधि, नाथ कहउ सतिभाउ। चाहउॅं तुम्हहिं समान सुत, प्रभु सन। कवन दुराउ।।
अर्थात मैं आपके सामान पुत्र चाहता हूं। इस पर भगवान ने कहा कि अपने जैसा मैं कहां खोजने जाऊंगा, समय आने पर तुम अवध के राजा बनोगे और मैं उस समय तुम्हारा पुत्र बनकर आऊंगा।
तुलसी लिखते हैं:-
होइहहु अवध भूअल तब, मैं होब तुम्हार सुत (सोरठा संख्या 151)
यह जो पूरी कथा याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज मुनि को सुना रहे थे, उस कथा में याज्ञवल्क्य जी कहते हैं कि यह तो रहा भगवान के राम रूप में अवतार लेने का एक कारण। अब दूसरा कारण भी सुनो।
दूसरा कारण प्रतापभानु राजा था, जो एक बार जंगल में शिकार करने के लिए गया और एक सूअर के पीछे-पीछे दौड़ता हुआ रास्ता भूल गया । एक आश्रम में जाकर देखा कि प्रताप भानु का शत्रु कपटी-मुनि का वेश बनाए हुए बैठा है । प्रतापुभानु तो उस कपटी मुनि को पहचान नहीं सका, लेकिन उस कपटी मुनि वेशधारी राजा ने प्रतापभानु को पहचान लिया । प्रताप भानु से बदला लेने के लिए उसने प्रताप भानु को अपने जाल में फॅंसाना शुरू कर दिया और संयोग देखिए कि प्रताप भानु भी फॅंसता चला गया । यह भाग्य की बात होती है। जैसी होनी प्रबल होती है ,वह उसी प्रकार हो जाती है। इस संबंध में तुलसी ने एक लोक व्यवहार का बहुत सुंदर दोहा लिखा है ,जो इस प्रकार है :-
तुलसी जसि भवतव्यता, ऐसी मिलइ सहाइ। आपुनु आवइ ताहि पहिं ताही जहॉं ले जाइ (दोहा संख्या 159 ख)
भवतव्यता का अर्थ भाग्य अथवा होनहार से है। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी इस दोहे की टीका इन शब्दों में लिखते हैं:-
“जैसी भवतव्यता होती है, वैसे ही सहायता मिल जाती है। या तो वह आप ही उसके पास आती है, या उसको वहां ले जाती है।”
राजा प्रतापभानु इस प्रकार कुटिल मुनि के कुचक्र में फंसता चला गया और कपटी मुनि ने उसे बातों में लगा कर उसके सर्वनाश का एक कुचक्र रच दिया। प्रारंभ में तो राजा प्रताप भानु ने कुटिल मुनि को अपना असली नाम नहीं बताया और छुपा कर रखा। किंतु बाद में सारा भेद खोल दिया। इस बिंदु पर तुलसीदास एक सोरठे के माध्यम से समाज में राजा, महाराजाओं और बड़े व्यक्तियों द्वारा अपना परिचय छुपा कर रखने की नीति की प्रशंसा करते हुए निम्न प्रकार से सोरठा लिखते हैं :-
सुनू महेश असि नीति जहॅं तहॅं नाम न कहीं नर (सोरठा संख्या 163)
इसका अर्थ यह है कि राजा लोग अपना नाम सब जगह नहीं बताते। विश्लेषण यह है कि बड़े लोगों के हजारों शत्रु होते हैं। अपना परिचय देकर अज्ञात स्थानों पर वह संकट में फंस सकते हैं। अतः सामान्य व्यक्ति के तौर पर अगर वह घूम रहे हैं, तो उन्हें अपना परिचय छुपा कर रखना चाहिए। यह नीति की बात है, जिसके सदुपदेशों से रामचरितमानस के प्रष्ठ भरे हुए हैं। वास्तविकता भी अगर हम देखें तो यही खुलकर सामने आती है कि अगर राजा प्रताप भानु को कुटिल मुनि पहचान नहीं पाता तो राजा प्रताप भानु पर कोई संकट नहीं मॅंडपा पाता । ‌लेकिन कपटी मुनि ने षड्यंत्र रच कर राजा प्रताप भानु को एक लाख ब्राह्मणों को भोजन करने के लिए बुलाने पर राजी कर लिया । खुद उस आयोजन का रसोईया बन बैठा और भोजन में पशुओं के मांस तथा ब्राह्मणों के मांस को मिलाकर तैयार रसोई आमंत्रित ब्राह्मणों के सम्मुख परोस दी। जिसका परिणाम यह निकला कि एक लाख ब्राह्मणों ने राजा प्रताप भानु को अगले जन्म में राक्षस बनने का शाप दे दिया । यही तो उनका शत्रु चाहता था। इस कथा में बीच-बीच में तुलसी कुछ नीति की बातें पाठकों के सामने प्रस्तुत करते रहते हैं । एक स्थान पर वह लिखते हैं :-
रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिय न ताहु। अजहुॅं देत दुख रवि शशिहि, सिर अवशेषित राहु (दोहा संख्या 170)
अर्थात शत्रु को कभी भी छोटा नहीं समझना चाहिए। वह कितना भी छोटा क्यों न हो लेकिन व्यक्ति का भारी नुकसान कर बैठता है । सचेत रहना चाहिए क्योंकि सिर कटने के बाद भी राहु हमेशा चंद्रमा और सूर्य को दुखी करते हैं ।बाद में प्रताप भानु राजा ब्राह्मणों के शाप के कारण रावण के रूप में पैदा हुआ। तुलसी लिखते हैं :-
काल पाइ मुनि सुनु सोई राजा। भयउ निशाचर सहित समाजा।। दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावण नाम वीर बरिबंडा।। (दोहा वर्ग संख्या 175)
जब हम विचार करेंगे कि एक निर्दोष व्यक्ति राजा प्रताप भानु काल के चक्र के वशीभूत होकर अगले जन्म में रावण के राक्षसी स्वरूप को प्राप्त हुआ, तब हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि होनी बहुत बलवान होती है अथवा भाग्य के लिखे हुए को कोई भी टाल नहीं सकता । परिस्थितियां अपने आप बनती चली जाती हैं और व्यक्ति उनके सामने पराजित होने के लिए विवश हो जाता है।
भाग्य के सामने मनुष्य की परवशता पर तुलसी ने एक दोहा लिखा है जो इस प्रकार है:- भरद्वाज सुनु जाहि जब, होइ विधाता बाम। धूरि मेंरू सम जनक जम, ताहि ब्यालसम दाम।। (दोहा संख्या 175)
अर्थात याज्ञवल्क्य जी भरद्वाज मुनि से कहते हैं कि जब विधाता बाम अर्थात विपरीत होता है तब धूल भी मेरु पर्वत के समान हो जाती है। पिता यम के समान हो जाते हैं और रस्सी सांप के समान बन जाती है ।
रावण कुंभकरण और विभीषण ने ऋषि पुलस्त्य के पुत्र होने के नाते तपस्या की, लेकिन तीनों भाइयों का स्वभाव अलग-अलग होने के कारण उन्होंने जो वरदान मांगा, वह उनके मूल चरित्र को उद्घाटित करने वाला था । रावण ने बल के महत्व को सामने रखा और पृथ्वी पर अपना साम्राज्य स्थापित करने की दृष्टि से यह वरदान मांगा कि हम किसी के मारने से न मरेंं केवल वानर और मनुज हमें मार सके अर्थात वास्तव में हमें कोई न मार सके।
तुलसी लिखते हैं:-
हम काहू के मरहिं न मारें। वानर मनुज जाति दुइ मारें (दोहा वर्ग संख्या 176)
दूसरी ओर कुंभकरण को देखकर तो ब्रह्मा जी को स्वयं ऐसा लगने लगा कि यह दुष्ट अगर छह महीने आराम करे तो दुनिया थोड़ी शांति से रह सकेगी और उन्होंने उसकी मति फेर दी, जिसके कारण उसने छह महीने की नींद वरदान के रूप में मांगी।
तुलसी लिखते हैं :-
सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नींद मास षट केरी।।
इन सबसे अलग जैसा कि भक्तों का स्वभाव होता है विभीषण ने न तो धन मांगा, न शरीर का अमरत्व मांगा और न ही जीवन में आलस्य को प्रधानता दी। विभीषण ने तो केवल भगवान के चरण कमलों में शुद्ध अनुराग मॉंगा। यही मनोकामना भक्त की तुलसी लिखते हैं :-
तेहि मागेउ भगवंत पद, कमल अमल अनुराग (दोहा संख्या 177)
हमारे जीवन में साधना के उपरांत भगवान से वरदान मांगने के क्षण उपस्थित अवश्य होते हैं। उस समय बहुत सावधानी के साथ हमें ईश्वर से वरदान मांगना होता है। नाशवान शरीर को अमर करने की इच्छा बहुत निम्न कोटि की मांगी जाने वाली वस्तु है। यह वास्तव में संभव भी नहीं है। धन-संपत्ति और पद-साम्राज्य सभी कुछ नाशवान होता है। हमारी बुद्धि विमल होकर परमात्मा के प्रति प्रेम में लग जाए, भक्तों के लिए ईश्वर से यही वरदान मांगना उचित है। लाखों तरह की विघ्न-बाधाएं भक्ति के मार्ग में आती रहती हैं और सच्चे भक्त उन बाधाओं से पार जाकर अखंड और अविचल ईश्वर आराधना की कामना करते हैं।
—————————————
समीक्षक : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

319 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

पुरानी यादें ताज़ा कर रही है।
पुरानी यादें ताज़ा कर रही है।
Manoj Mahato
पिता सा पालक
पिता सा पालक
Vivek Pandey
महिला सशक्तिकरण की दिशा
महिला सशक्तिकरण की दिशा
Laxmi Narayan Gupta
*Fruits of Karma*
*Fruits of Karma*
Poonam Matia
।
*प्रणय प्रभात*
यौवन रुत में नैन जब, करें वार पर  वार ।
यौवन रुत में नैन जब, करें वार पर वार ।
sushil sarna
मैं महकती यादों का गुलदस्ता रखता हूँ
मैं महकती यादों का गुलदस्ता रखता हूँ
VINOD CHAUHAN
कैसी प्रथा ..?
कैसी प्रथा ..?
पं अंजू पांडेय अश्रु
राहगीर
राहगीर
RAMESH Kumar
ज़रा ज़रा सा मैं तो तेरा होने लगा हूं।
ज़रा ज़रा सा मैं तो तेरा होने लगा हूं।
Rj Anand Prajapati
इश्क़ हो
इश्क़ हो
हिमांशु Kulshrestha
इंसान भी कितना मूर्ख है कि अपने कर्मों का फल भोगता हुआ दुख औ
इंसान भी कितना मूर्ख है कि अपने कर्मों का फल भोगता हुआ दुख औ
PANKAJ KUMAR TOMAR
अपना साया ही गर दुश्मन बना जब यहां,
अपना साया ही गर दुश्मन बना जब यहां,
ओनिका सेतिया 'अनु '
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
श्याम बदरा
श्याम बदरा
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
" गिर करके सम्हला होगा "
Dr. Kishan tandon kranti
मासी की बेटियां
मासी की बेटियां
Adha Deshwal
बेटियां
बेटियां
Mukesh Kumar Sonkar
सफलता की ओर
सफलता की ओर
Vandna Thakur
3246.*पूर्णिका*
3246.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
छू कर तेरे दिल को, ये एहसास हुआ है,
छू कर तेरे दिल को, ये एहसास हुआ है,
Rituraj shivem verma
कहां गए (कविता)
कहां गए (कविता)
Akshay patel
राम का आधुनिक वनवास
राम का आधुनिक वनवास
Harinarayan Tanha
हमने देखा तुमको....
हमने देखा तुमको....
Aditya Prakash
I know
I know
Bindesh kumar jha
*कविवर शिव कुमार चंदन* *(कुंडलिया)*
*कविवर शिव कुमार चंदन* *(कुंडलिया)*
Ravi Prakash
𑒔𑒰𑒙𑒳𑒏𑒰𑒩𑒱𑒞𑒰,𑒢𑒱𑒖 𑒮𑓂𑒫𑒰𑒩𑓂𑒟,𑒢𑒱𑒖 𑒨𑒬𑒑𑒰𑒢 𑒂 𑒦𑒹𑒠𑒦𑒰𑒫 𑒏 𑒖𑒰𑒪 𑒧𑒹 𑒅𑒗𑒩𑒰𑒨𑒪 𑒧𑒻
𑒔𑒰𑒙𑒳𑒏𑒰𑒩𑒱𑒞𑒰,𑒢𑒱𑒖 𑒮𑓂𑒫𑒰𑒩𑓂𑒟,𑒢𑒱𑒖 𑒨𑒬𑒑𑒰𑒢 𑒂 𑒦𑒹𑒠𑒦𑒰𑒫 𑒏 𑒖𑒰𑒪 𑒧𑒹 𑒅𑒗𑒩𑒰𑒨𑒪 𑒧𑒻
DrLakshman Jha Parimal
ज़ख़्म मेरा, लो उभरने लगा है...
ज़ख़्म मेरा, लो उभरने लगा है...
sushil yadav
माता- पिता
माता- पिता
Dr Archana Gupta
"दास्तां ज़िंदगी की"
ओसमणी साहू 'ओश'
Loading...