शिक्षा मेरा अधिकार – छीने उसे धिक्कार
शिक्षा मेरा अधिकार – छीने उसे धिक्कार
प्रत्येक माता-पिता के लिए यह आवश्यक है कि वो बच्चों की शिक्षा संबंधी कानूनी पहलुओं के संदर्भ में भी जानकारी रखें। भारतीय संसद द्वारा वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया गया। इसे सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2010 में शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के रूप में लागू कर दिया गया । इस अधिकार संबंधी सर्वप्रथम याचना प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता श्री गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा की गई थी जिन्होंने मार्च 1910 में ब्रिटिश विधान परिषद के सामने मुफ्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा संबंधी याचना रखी थी, हालांकि इसे ब्रिटिश सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया था । आज शिक्षा का अधिकार कानून गरीब बच्चों के लिए बहुत ही फायदेमंद है । इस कानून के तहत 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं जरूरी शिक्षा पर बल दिया गया है । आइए इस अधिनियम संबंधी कुछ कानूनी पहलुओं की जानकारी अवश्य लें । इस कानून के तहत सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निजी स्कूलों को 25% गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना अनिवार्य है स्कूल अपने पड़ोस में रहने वाले गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करेंगे हालाँकि अल्पसंख्यक वर्ग के स्कूलों को इस श्रेणी से बाहर रखा गया है । कानून के अनुभाग 4 के अनुसार बच्चों को उनकी आयु के अनुसार प्राथमिक शिक्षा के लिए दाखिला दिया जा सकता है। अनुभाग-5 के अनुसार एक बच्चा किसी दूसरे स्कूल में भी तबादला करवा सकता है । अनुभाग 6 के अनुसार उसे पहली से पांचवी तक 1 किलोमीटर के दायरे वह छठी कक्षा से आठवीं कक्षा तक 3 किलोमीटर तक के दायरे में शिक्षा दी जा सकती है विशेष क्षेत्र में इस अनुभाग में कुछ छूट दी गई है । अनुभाग 7 के अनुसार राज्य एवं केंद्र सरकारों को इन बच्चों की शिक्षा की आर्थिक जिम्मेदारी दी गई है । अनुभाग 10 में माता-पिता की भी विशेष जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों को मूल शिक्षा प्रदान कराएं । बच्चों को समय पर शिक्षा ना दिलाना भी सरकार द्वारा एक अपराध की श्रेणी में रखा गया है । अनुभाग 11 के तहत राज्य सरकारों को गरीब बच्चों की शिक्षा संबंधी विशेष दायित्व दिया गया है । अनुभाग 12 के तहत स्कूलों की भी यह जिम्मेवारी है कि वह क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा प्रदान करें । अनुभाग 13 मैं यह प्रावधान है कि गरीब बच्चों से शिक्षा के लिए दाखिले के समय फीस वसूल न की जाए । अनुभाग 14 में साफ तौर पर यह लिखा हुआ है कि अगर बच्चे के पास दाखिले के समय जन्म प्रमाण पत्र नहीं भी हो तो उसे किसी अन्य दस्तावेज के आधार पर दाखिला दिया जा सकता है । जैसे आंगनबाड़ी का प्रमाण पत्र इत्यादि । अनुभाग 17 मे साफ तौर पर लिखा हुआ है कि बच्चों को स्कूलों में किसी भी तरह का शारीरिक दंड नहीं दिया जाए । इसके अलावा इस कानून के अनुभाग 27 मे दिया गया है कि सरकार का दायित्व है कि वह अध्यापकों को शैक्षिक कार्यों के अलावा बाकी गैर शैक्षिक कार्यों में ज्यादा शामिल ना करें । अनुभाग 28 में यह प्रावधान किया गया कि अध्यापक स्कूल के अलावा घर पर ट्यूशन ना करें । जिससे उनका ध्यान स्कूल में ही बच्चों की शिक्षा पर ज्यादा रहे । अनुभाग 30 मे भी यह निर्देश दिए गए राज्य सरकार प्राथमिक शिक्षा के लिए बोर्ड परीक्षाएं न करवाएं । आज माता-पिता के लिए यह आवश्यक है कि वह इस अधिकार को जानकर अपने बच्चों को आगामी सत्र के लिए दाखिला अवश्य दिलाएं । हालांकि यह एक विस्तृत कानून है लेकिन इस लेख के माध्यम से मैंने केवल कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला है। गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाना व लोगों को बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरुक करना मेरा एक छोटा सा प्रयास है । इस लेख के माध्यम से मैं सभी अभिभावकों को यह कहना चाहूंगा कि शिक्षा बच्चों के लिए एक अमूल्य गहना है उन्हें शिक्षा से विमुख होने से बचाएं और समाज में ज्यादा से ज्यादा लोगों को साक्षर बनाने में अपना सहयोग दें।