राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
*बच्चे-जैसे हम बनें, प्रभु जी दो वरदान (कुंडलिया)*
या तो लाल होगा या उजले में लपेटे जाओगे
रिश्तों में जब स्वार्थ का,करता गणित प्रवेश
इत्र जैसा बहुत महकता है ,
मिले हैं ऐसे भी चेहरें हमको जिंदगी के सफ़र में
एहसास
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जो पहले थी वो अब भी है...!
आदमी और धर्म / मुसाफ़िर बैठा