“शाइरी लगने लगे”
ग़ज़ल
दोस्त कहना अब ग़ज़ल कुछ यूँ,सही लगने लगे।
सादगी से तुम कहो जो, शाइरी लगने लगे।।
क्यों भला ऐसा हुआ करता जहां में दोस्तों।
कुछ दिनों पहले मिले जो, जिंदगी लगने लगे।।
जल्दबाज़ी मत करो, है जिंदगी भर का सवाल।
फैसला तेरा न सबको बेबसी लगने लगे।।
जब हकीकत जान ली तेरे किये वादों की दोस्त।
सब नज़ारे चार दिन की चांदनी लगने लगे।।
जब अँधेरा हो घना यारों, दिखाई दे न कुछ।
रात जुगनू का चमकना रौशनी लगने लगे।।
सुरेंदर इंसान
सिरसा (हरियाणा)