शरद ऋतु
विधा-छप्पय
निकले स्वेटर – शॉल,ठण्ड का मौसम आया।
जलने लगे अलाव,घना कुहरा अब छाया।
हुई गुलाबी धूप , सेंकती , भाती सबको ।
राहत मिलती खूब,गर्म कर जाती सबको।
ठण्ड झेलता नीड़ नित,विहगों का आधार है।
दुखदायी लगने लगी,शीतलहर की मार है।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**