Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
3 May 2024 · 1 min read

ज़िंदगी के सौदागर

ज़िंदगी की बोली लगती है ,
क्या तुम ज़िंदगी खरीद पाओगे ?

क्या उसकी कीमत तुम चुका पाओगे ?
तड़पते जिस्मो जाँ से बग़ावत करती रूह को
क्या तुम मना पाओगे ?

श़फ़्फाक लिबास में दिखते ज़िंदगी के सौदागरों से क्या खुद को बचा पाओगे ?
जहां ज़िंदगी का सौदा दौलत और रसूख़ के दम पर होता हो , वहाँ इन्सानियत ढूँढ पाओगे ?

ज़मीर , ईमान , सबाब , इंसानियत का तक़ाज़ा सब कोरी किताबें बातें होकर रह जाती है ,
जब मुफलिसी की गर्दिश में उखड़ती सांसें लिए ये ज़िंदगी तड़पती रह जाती है।

Loading...