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29 May 2024 · 1 min read

हमसाया

हमसाया

अब तन्हाई ही रास आती है
ये उदासी भला कहाँ जाती है
एक दौर था अपना भी,
अब कहाँ कौन देखी जाती है
ख़ालीपन स्याह सा ढुलका है हर तरफ़
वजूदों पर कहाँ अब आँच आती है,
कह दिया गया जाओ चले जाओ,
अब ज़रूरत नहीं तुम्हारी,
अब आदतें कहाँ छोड़ी जातीं है।
कभी शबों पर छिटकती थी चाँदनी
अब तो सिर्फ़ धुआँ धुआँ है।
कितने बेबस और बेचैन है,
ताउम्र धोखे में एक उमर गुज़ार दी
और अब सोचें है कि नया सवेरा हो जाएँ ।
एक परछाई और काला साया ही तो था मेरा अपना,
जिससे जीवन भर भागा करी,
अब लगता वही ख़ास है,
अब अपना ही एहसास एक याद है
तमन्नाएँ यूँ मचल जाएँ तो किया कीजे,
अपने जब बेगेरत हो जाएँ तो बस
दुआ करिए
दुआ करिए ।

डॉ अर्चना मिश्रा

Language: Hindi
72 Views

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