विषय – आत्मविश्वास और आत्ममुग्धता में अंतर
विषय – आत्मविश्वास और आत्ममुग्धता में अंतर
अगर तुम्हें लगता है कि
तुम ही श्रेष्ठ हो जगत में
अगर तुम्हें लगता है कि
इस दुनियां में तुम्हारे जैसा दूसरा कोई नहीं
अगर तुम्हें लगता है कि
तुम ही सबकुछ हो
अगर तुम्हें लगता है कि
तुम ही सबसे सुंदर हो
अगर तुम्हें लगता है कि
तू नहीं मिला तो कोई और मिल जाएगा
अगर तुम्हें लगता है कि
तुमसे बड़ा इंसान इस दुनियां में दूसरा कोई नहीं
अगर तुम्हें लगता है कि
तुम ही भगवान हो तुम्हारे बिना यह दुनियां नहीं चल सकती है
अगर तुम दूसरों को परेशान करके
खुश होते हो, दूसरों को कष्ट में देखकर मुस्कुराते हो
अगर तुम्हें किसी का दुःख दर्द
महसूस नहीं होता है
तो तुम आत्मविश्वासी नहीं हो
तुम आत्ममुग्धता के शिकार हो
बाहर निकलो आत्मुग्धता से
क्योंकि तुम इंसान हो दानव नहीं
भारतीय संस्कृति में दैत्यों को
आत्ममुग्धता का शिकार पाया जाता है
तुम मनुष्य हो कोई दैत्य नहीं
आसुरी व्यवहार से बाहर निकलो
विनम्रता रखो बोलने से पूर्व
शालीनता रखो सुनने से पूर्व
दया, करूणा धर्म धारण करो
झूठे अहंकार का त्याग करो
सत्य, न्याय अहिंसा के लिए
अपने प्राणों का बलिदान दे सको तो दो
अगर तुम दैवीय नहीं बन सकते
तो दैत्य भी नही बनो केवल इंसान बनो
आत्ममुग्धता आत्महत्या के समान है
और आत्महत्या करना अपराध है
_ सोनम पुनीत दुबे