विचित्र तस्वीर
रोज सिमट रहा खेत
सिमट रहा गॉंव
नित-निरन्तर सिमट रही
हवा पानी और छाँव।
मगर
दिन दूनी रात दस गुनी
होते जा रहे
शहरों का विस्तार,
देश के किसानों की दशा
एकदम तार-तार।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
रोज सिमट रहा खेत
सिमट रहा गॉंव
नित-निरन्तर सिमट रही
हवा पानी और छाँव।
मगर
दिन दूनी रात दस गुनी
होते जा रहे
शहरों का विस्तार,
देश के किसानों की दशा
एकदम तार-तार।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति