“वर्तमान”
“वर्तमान”
हर पल मर रहा,
अतीत में बदल रहा
नदी की रेत सा
पलक झपकते फिसल रहा,
दरिया के पानी सा
समय की धारा में बह रहा।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
“वर्तमान”
हर पल मर रहा,
अतीत में बदल रहा
नदी की रेत सा
पलक झपकते फिसल रहा,
दरिया के पानी सा
समय की धारा में बह रहा।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति