वर्तमान राजनीति
राजनीति का क्षुद्र रूप लखि, मन होता है खिन्न,
सेवा के पथ पर निकला है, आरोपों का जिन्न !
उगल रहे हैं आग, सदा कुत्सित भावों से,
होत न हित जनमानस का इन कटु घावों से !
बढ़ता जन का बैर कपट की इस नीती से,
तनिक विचार करो इसको मन की प्रीती से !
राजनीति की दशरथ ने भेजे बालक वन
राजपाठ को छोड़ फिरे जो कानन-कानन !
मगर आज उस मारग में वह चित्र कहाँ है?
राजनीति में कोई किसी का मित्र कहाँ है?
जहाँ सध गया स्वार्थ वहीँ तुम दौड़ो भागो,
बस जनता से कहते रहो तुम जागो-जागो
सेवा का वह मार्ग उसे व्यवसाय बनाया,
जनहित के पथ पर बस मात्र अँधेरा छाया !
हुवा राष्ट्रहित गौण सभी स्वार्थों के आगे
राष्ट्र चेतना हेतु ना जाने कब जन जागे !!
– नवीन जोशी “नवल”