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4 May 2024 · 2 min read

वर्णव्यवस्था की वर्णमाला

[मंगलेश डबराल की ’वर्णमाला’ कविता से प्रेरित]

एक भाषा में अ लिखना चाहता हूं
अ से अच्छाई अ से अत्याधुनिक
लेकिन लिखने लगता हूं
अ से अत्यंत बीमार वर्णवादी अ से अति इडियट मनुवादी

कोशिश करता हूं कि क से कमेरा या कर्मफेरा लिखूं
लेकिन मैं लिखने लगता हूं क से कसाई वर्णाश्रम धर्मव्यवस्था और क से कुटिल सवर्ण लाभुक

अभी तक ख से खाना लिखता आया हूं
लेकिन ख से खतरनाक वर्णवादी के हमारे पेट पर हमले की आहट भी सताती है

मैं सोचता था फ से फल ही लिखूं जो वंचितों को भरसक ही ’नसीब’ होते हैं, जबकि उन्हें उगाते वे हैं
लेकिन मैंने देखा पैसे के बल पर खाते हैं उसे रसूख वाले, जैसे गाय, भैंस, बकरी, ऊंट के बच्चों के हिस्से के दूध खा जाते हैं हम निर्लज्ज चालाक मनुष्य

कोई द्विज मेरा हाथ प्यार से पकड़ता है और कहता है
भ से लिखो भैय्यारी क्योंकि भगवा भारत का अब हर सवर्ण वसुधैव कुटुंबकम् का फैशनेबल राही

कह रहे हों वे जैसे कि
द को हम द्विजों की दलितों के प्रति दया का प्रतीक समझो और
प में पाओ भारत के हर बुद्धिजीवी सवर्ण के प्रगतिशील हो जाने का संकेतक

आततायी बौद्धिक सवर्ण सजा लेते हैं इस आधुनिक समय में भी
अपनी मनुऔलादी पुरातन वर्णव्यवस्था की पूरी वर्णमाला
वे अतीत की विभेदक हिंसक समाज व्यवस्था को लागू कर जाते हैं आज भी अपने जीवन में और अपने प्रभाव के कैचमेंट एरिया में

आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला
वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं समाज की हिंसा
ह को हमारी हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है
इन हत्यारे बामनों द्वारा

हम कितना ही अपने हक और हुकूक की रक्षा में रहें प्रयासरत
वे ह से हमारी हकमारी और हत्या करते रहेंगे हर समय।

Language: Hindi
21 Views
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