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24 Jan 2024 · 4 min read

*वकीलों की वकीलगिरी*

रेप मर्डर चार सौ बीस, जब तक दो इनको फीस।
बातें इनकी हवा- हवाई, करते क्या है सुन लो भाई।
जमानत तुम्हारी सौ प्रतिशत, बाहर से बाहर होगी।
चाहें केस हो कैसा भी, फीस मनचाही लगेगी।
भाषा इनकी मीठी- झूठी, जज हमारे खास हैं।
कई वकील परिचित हैं अपने, मंत्री तक से बात है।
जो हुआ सब भूल जाओ, रोटी पेट भर के खाओ।
चिंता की ना कोई बात, काम करूंगा हाथों-हाथ।
क्लाइंट हाथ जोड़े आस लगाए, वकील अपने गुण गिनाएं।
मीठी-मीठी बोली बोले, आप बिल्कुल न घबराएं।
समय गुजरा बोले वकील साहब, न हो पाया शरीक।
मिल जाती है कोई हमको, अगली तारीख।।१।।
फोन करें वकील साहब को, कैसा रहा हाल?
ये हो जाता वो कर देता, चलते अपनी चाल।
केस तुम्हारा है पेचीदा, इतने में न काम चले।
पहले वादा हुआ वो तोड़ा, इतने में ना दाल गले।
फंस गया पिंजरे में पंछी, और ना कहीं आस लगाए।
काले कोट वाले के आगे, चरण पड़े और गिड़गिड़ाए।
झूठे निकले किये जो वादे, बदल गए इनके इरादे।
फंस गया बंदा लूटे पैसे, कमाए थे वे जैसे-तैसे।
कुछ इधर की कुछ उधर की, सैकड़ो बात बताते।
रास्ते हुए अब सारे बंद, मुजरिम से फरमाते।
कैसे तुम्हारा लंबा- चौड़ा, ना समझो बारीक।
मिल जाती है फिर हमको, कोई अगली तारीख।।२।।
शर्म छोड़ बेशर्म हुए, केस पर ना कोई ध्यान।
मिलता रहे पैसा बात करें, भूल गए अपने बयान।
यही सिलसिला लगातार चले, बेल होगी अबकी बार।
चिंता बिल्कुल ना करो, लाओ ना मन में बुरे विचार।
सब तरह की बेल कराई, छोटा-मोटा काम नहीं।
इस बार तेरी भी होगी, बात सुन ले सही-सही।
बाद में लगता दम नहीं, झूठ बोलना कम नहीं।
फोन करो मिलो कई बार, उत्तर ना दमदार मिले।
पैसा समय दोनों निकले, अब ना कोई बात बने।
चारों ओर घोर निराशा, ना रही अब कोई आशा।
मांगों घूमो चक्कर काटो, ना देता कोई भीख।
मिल जाती है फिर हमको, कोई अगली तारीख।।३।।
अधिकतर का यही हाल है, सौ प्रतिशत नहीं कहता।
बढ़ियाई गुणगान में कसर नहीं, बंदी सब कुछ सहता।
कभी ये कभी वो चार्ज, लोगों को चक्कर लगवाते।
मूल काम से वे कतराते, नई-नई रोज बात बनाते।
जज वकील पुलिस की भाषा, हमारे समझ न आती है।
निर्धन और निर्धन हुआ, अमीरों को न्याय दिलाती है।
झूठी भाषा क्यों तुम बोलो, बिन मतलब न दाम धरो।
गरीब की हाय बुरी होती है, काम करो कुछ काम करो।
बात न गोल-गोल घुमाओ, साफ-साफ बताओ तुम।
जो काम का प्रण लिया था, काम करो तुम दो कुछ सीख।
मिल जाती है फिर हमको, कोई अगली तारीख।।४।।
खुद के साथ बीत रही है, बात कोई भी झूठ नहीं।
जो ईमान पर डटे हुए हैं, उनके लिए यह सीख नहीं।
आज इस कोर्ट कल उस कोर्ट, छूटा नहीं सुप्रीम कोर्ट।
सफेद खाकी काला कोट, मरते दम तक करते चोट।
जो काम न हो साफ-साफ बताओ, किसी को झूठ न फंसाओ।
आज विपक्ष का वकील नहीं, कल जज साहब छुट्टी पर।
कभी एप्लीकेशन न लगी, कभी फाइल फंस गई काउंटर पर।
कभी हड़ताल कभी मीटिंग, कभी सरकारी वकील नहीं।
इलाज बिन मां बच्चे मर गए, टूट गया उसका परिवार।
उधार भी कोई देता नहीं, घूम लिया सारा संसार।
दोषी तो निर्दोष हुआ, फिर निर्दोष पकड़ लेता है बुरी लीक।
मिल जाती है फिर हमको, कोई अगली तारीख।।५।।
तारीखें गुजरीं झूठ पर झूठ, अभी ना हो पाई बेल।
कभी नेट पर तारीख शो हो, कभी साइट हो जा फेल।
तनाव अपमान बहुत कष्ट भी झेला, अब भी पड़ा है जेल।
परिवार टूटा अपने रूठे सब हुए पराए,व्यवस्था हो गई फेल।
कई साल पीछे हो जाता, बिन दवाई मरे बच्चें माता।
जेल की दीवारों से बातें करता, ना मिले कोई सपोर्ट।
खाकी सफेद काले कोट ने, दे दी ऐसी चोट।
जीते जी मर जाता आदमी, बीते आह भरी शाम।
कहां से लायें कैसे कमाएं, बिन पैसा ना चले काम।
आंसू आ जाते हैं आंखों में, हो गया हूं बीक।
तब जाकर मिल पाती बेल, फिर बाहर की तारीख।।६।।
बेल हो गई जमानती का चक्कर, चलता लगातार केस।
बीता समय सालों गुजरे, घर में रहे क्लेश।
दिमाग में रहे न कोई आस, टूट गया सबसे विश्वास।
कपड़े फटे खाना नसीब नहीं, रास्ते में क्या हो जाए हाल?
मर मर कर जीता है आदमी, हो गया बिल्कुल कंगाल।
गर हो जाए रास्ते में टक्कर, चीख पुकार हो हाहाकार।
पुलिस कोर्ट वकील के चक्कर में, उजड़ गया उसका घरवार।
टूटा श्रृंगार अब न प्यार न संसार, निर्दोष हो गया शिकार।
खाकी काले कोट से दूर रहो, सोचो समझो करो विचार।
आंखों में आ जाते आंसू, सच्चाई बताए दुष्यन्त कुमार।
फर्जी केस में मुझको फांसा, मिली बहुत कुछ सीख।
अब जाने कब तक चलती रहेगी, आगे की तारीख।।७।।

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