वक़्त ने हीं दिखा दिए, वक़्त के वो सारे मिज़ाज।
वक़्त ने हीं दिखा दिए, वक़्त के वो सारे मिज़ाज,
जब खामोशी में छिपाने पड़े, शब्दों के सारे वो राज।
कभी भावनाओं में हीं हो जाती थी, जो बात,
अब तो शब्दों ने भी खो दिया, कहने-सुनने का वो अंदाज।
बादलों को मिल जाता है, कभी बारिशों का साथ,
और धूल जाते हैं, ये आंसूं भी उसकी बूंदों के साथ।
कदम खुद हीं थिरक जाते थे, सुनकर कभी जो आवाज,
अब तो संगीत के सुरों को भी है, मेरी उपस्थिति से ऐतराज।
धूल से सनी चिट्ठियों से भरी थी, एक दराज़,
चाभियाँ थी हर पल हाथ में, पर ना टूट सके थोड़े रिवाज।
मंदिरों में बजती हैं घंटियाँ, और गूंजते हैं शंख के साज़,
पर ईश्वर जो दिल में बसा है, उसे कर गए सब नज़रअंदाज़।
इश्क़ से हारे थे, वो रोग निकला था बड़ा लाईलाज़,
चुंधिया गयी थी आँखें जब, मेरी रौशनी हीं निकली धोखेबाज़।
संभाला खुद को हर बार, पर कहाँ ठहरी कभी गिरती वो गाज,
उन ठोकरों को भी शुक्रिया, जो पहुंचा गए मुझे इस मक़ाम पे आज।